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२६ ज्ञानानन्द रत्नाकर।
चौपाई। ता कुलमें बहु नृप गुणधाम । भये कहां तक लीजै नाम ॥ फेर महोदधि नृप अभिराम । भये अनूपम ताही ठाम ॥
दोहा। तिनके सुत प्रतिचंद्रके, दोयपुत्र अतिधीर ॥ भये प्रथम किहकंद अरु, छोटा अंधक वरि ॥ तिन्हे राज प्रतिचंद्र देय व्रत लेय गये तप करने बन॥ जिन शासनका लहों आधार न कल्पित कहों वचन ॥ एक दिना विजयाई पर आदित्यपुरके विद्याधरने ॥ नृपति बुलाये स्वयंवर मंडप में कन्या वरने॥ नृप किहकंद श्री मालाने तहां प्रेम धरके परने॥ रथनूपुरका ईश लखि विजयसिंह लागा जरने॥
चौपाई। भया परस्पर युद्ध महान । अंधकने करगहि धनु बान ॥ विजयसिंह मारा शरतान । भगी सेन ताकी तजि थान ॥
दोहा। असनवेग ताका पिता, सुनत चढ़ा ले सेन ॥ तब वानर वंशी भगे । सन्मुख तहां रहेन ॥ असनवेग ने घेर किहकपुर कपिवंशिनसे कीना रन॥ जिन शासन का लहों आधार न कल्पित कहों वचन॥६॥ असनवेग का सुत विद्युतवाहन किहकंद लड़े ले बाण ॥ असनवेगने तहां मारा अंधक दारुण रण ठान॥