________________
ज्ञानानन्द रत्नाकर। सुर शिव सुख बहुतोंको दीना । जिन कीनी पद सेव ॥३॥ । बार करत क्यों मेरी बारी । प्रभुजनकी सुधि लेव ॥ नाथूरामको धर्म पोत घर । भव सागरसे खेव ॥ इति गौरी
प्रभाती ॥३॥ ..चेत चिदानंद नाम भजले जिनवरका ॥ टेक ॥
· गाफिल मत रहो जीव, अब तक सोये सदीव ॥ - अब तो हग खोला मार्ग देखो निज घर का ॥१॥
पाया नर जन्म सार, अब जिय कुछ कर विचार ॥ बार बार पायो दुलंभा जन्म नर का ॥२॥ जिन साना मित्र और, लखियत है किसी और ॥
तात मात पुत्र मित्र सब कुटुम्ब जर का ॥३॥ । अब तज सब अन्य काम, जिनवरका भजो नाम।।। । यासे होय नाथूराम वासा शिवपुरका ॥४॥
प्रभाती॥२॥ जय जिनेश जय जिनेश जय जिनेश देवा ॥ टेक ॥ भवोदधि गहरो अपार, डूबत जन मांझ धार ॥ अवतो प्रभु कीजे पार सेवक का खेवा॥१॥ थारे चरणार बंद, अचंत सुर नर खगेंद्र ॥ . गावत स्तुति मुनेंद्र पावत शिव मेवा ॥२॥ थारे प्रभु गुण अनंत, गणधर नालहें अंत ॥ ध्यावत सब संत जान देवनके देवा ॥३॥ तज कर संसार वास, पावत शिवपुर निवास ।।