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ज्ञानानन्द रत्नाकर। . १५ सर्व विश्वके ज्ञेय प्रति भासत जिन के ज्ञान में हैं ॥४॥
विहर मान २० तीर्थंकर की लावनी ॥ ११॥ विहरमान जिन ढाई द्वीप में बीस सदाही राजतहैं । तिन का दर्शन तथा स्मर्ण किये अप भाजत हैं। .
(टेक) जंबूद्वीप में विदेह बत्तिस आठ आठ में एक जिनेश । सदा विराजे रहें भवि जीवों को देते उपदेश॥ सीमंधर युगमंदिर स्वामी वाहु सुबाहु श्री परमेश ॥
चारि जिनेश्वर कहे तिन के पद वंदन करों हमेश। । वतै चौथा काल जहां नित देव दुंदुभी वाजत हैं । | तिन का दर्शन तथा स्मर्ण किये अब भाजत हैं॥१॥ । धातुकी खंड द्वीप में विदेह हैं चौसाठ अरु बसु जिनराज।।
आठ २ में एक तीर्थकर तिन में रहे विराज ॥ सुजात और स्वयंप्रभु ऋषभानन अनंत वीर्य महाराज ॥ विशाल सूरी प्रभू वज्र धर चंद्रानन राखो लाल ॥
छालिश गुण व्यवहार और निश्चय अनंत गुण छाजत हैं। तिन का दर्शन तथा स्मर्ण किये अघ भाजत हैं ॥२॥
आधे पुष्करद्वीप में चौसाठि हैं विदेह अरु वसु जिन नाथ। तिनको सुर नर वहाँ पूजें हम भी यहाँ नावें मांथ ॥ . चंद्रवाहु श्री भुजंग ईश्वर नेम प्रभू वीरसेन जी नाथ ॥ महाभद्र अरु देव यश अजित वीर्य पद जोड़ों हाथ ॥ जिन की प्रभा देख रवि शशि तारा नक्षत्र ग्रह लाजतहैं ।।