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१२ ज्ञानानन्द रत्नाकर। आनंद धारे-यथा लखि रत्न भिखारी आंखों में ॥ देव करें नित सेव शंक से आज्ञाकारी आंखोंमें। उजर न जिनके रहें हाज़िर हरवारी आंखों में । निर्त करत गति भरत रिझावत देदे तारी आंखों में ॥ बसी निरंतर अनूपम आनंदकारी आंखों में ॥३॥ केवल ज्ञान भये यह दुनिया झलकत सारी आंखों में। पलक न लागें न आवे नींद तुम्हारी आंखोंमें॥ द्वादश सभा प्रफुल्लित छविलखि सुर नर नारी आंखों में ॥ किंचित कोई दृष्टिना पड़े दुःखारी आंखोंमें ॥ नाथूराम जिनभक्त दरश लखि भये सुखारी आंखों में ॥ वसी निरन्तर अनूपम आनंदकारी आंखोंमें ॥४॥
तथा ॥ ९ ॥ नाश भये सब पाप लखी जिन मुद्रा प्यारी आंखों से ॥ मोह नींद का गया अताप हमारी आंखों से ॥
(टेक) परम दिगम्बर शांति छवी नहिं जाय विसारी आंखों से ॥ लुब्ध भया मन यथा मणि देख भिखारी आंखोंसे ॥ . होत कृतार्थ देख दर्शन तुम सुर नर नारी आंखों से ॥
परद्रव्यों को हेय लखि प्रीति निवारी आंखों से - निज स्वरूप में मन भये लखि सम्यक धारी आंखों से ॥ .मोह नींदका गया आताप हमारी आंखों से ॥१॥ कायोत्सर्ग तथा पद्मासन प्रतिमा थारी आंखों से॥ .