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(३०) अर्थ-हे भगवन्त! में समताप सामायिक करता है। 'पाप सहित जोग (मन, वचन और काय)का त्याग करताहुं । जहां तक उस नियमकी उपासना करूं वहां तक दो कारणसे करना नहीं। तीन योगस मन, वचन और काय करके न करूंगा और न करा. ऊंगा, इस वातकी प्रतिज्ञा करके, हे भगवान् ! मैं उस पापसे निवृत्त होता हूं। उसकी निंदा करता हूं और गुरुकं सामने प्रकट कह कर विशेप निन्दा करता हुआ, उससे आत्माको वोसिराता हूं।
सामायिक पारनेको विधि । "इच्छामि खमासमण" कहकर "इरियावही" से लगाकर एक "लोगस्सका काउमग तथा प्रकट लोगस्स" तक कहके "इच्छामिखमा० इच्छा० मुहपत्ति पडिले हुँ इच्छं" कहकर मुहपत्ति पडि लेनेके बाद "इच्छामि खना० इच्छा० समाइअपारेमि ? * "यथाशक्ति" जि इच्छामि खमा० इच्छा० सामायिअंपारि" "तहत्ति' इस प्रकार कहकर दक्षिण (दाहिने) हाथको चर्वले या आसन पर रखकर मस्तकको झुकाते हुए एक नवकार मंत्र पढ़कर "सामाइयवयजुत्तो" पढ़े । पीछे x दक्षिण (जिमना ) हायको सीधा स्थापनाचार्यकी तरफ करके एक नवकार पढ़ना चाहिए।
* यदि गुरुमहाराजके समक्ष यह विधि की जाय तो "पुणोवि'कायवं" इतना गुरुमहाराजके कहे वाद " यथाशक्ति " कहना । ' इसी प्रकार दूसरे आदेशमें गुरुमहाराज कहे "आयारो न मोत्तबो"
इतना कहे बाद "तहत्ति' कहना चाहिए । : स्यापनाचार्य यदि पुस्तक मालासे स्थापन किये हो तो इसकी
आवश्यक्ता है, अन्य था नहीं । : पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामा काप मनाया - rrrr. द्वारा सम्पन्न प्राध्यात्मिक क्रान्ति में आपका अभूतपूर्व योगदान है। उनके । मिशन की जयपुर से संचालित समस्त गतिविधियों आपकी सूझ-बूझ एवं 'सफल संचालन का ही सुपरिणाम हैं।