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(९) हुआ, वहां जो प्रतिमाएं हैं, उनको मैं वंदन करता हूँ। । . विधि-एक खमासमण देकर आगेका पाठ पढ़ना ।
॥ जावन्त केवि साहु॥ जावन्त केविसाहु, भरहरवय महाविदेहे ॥ मव्वेसिंतेसिंपणओ,तिविहण तिदंड विरयाणं॥१॥
अर्थ-नितने कोई साधु है, पांच भरत, पांच ऐरावत (और) पांच महाविदेह, इन १५ क्षेत्रों में, उन सबको (मेग) नमकार हो । (मन, वचन और कायासे) जो तीन दंड ( अशुभ मन, बचन और काय ) से रहित हैं।
॥परमेष्ठि नमस्कार ॥ . नमोऽर्हतसिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः। · अर्थ-अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वमाधुओंको (मेरा) नमस्कार हो।
नोट-स्त्रीवर्गको इमके बनाए १ नवकार पढ़ना चाहिये । .. ॥ उपसर्गहर (स्तोत्र) स्तवन ॥
उसग्गहरं पासं, पासंवंदामि कम्मघणमुक्कं॥ विसहर विस निन्नासं, मंगल कल्याण आवासं ॥१॥ विसहर फुलिंगमंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ। तस्सग्गह, रोग, मारी, दुजरा जति उवसामं ॥२॥ 'चिठ्ठउ दूरे मंतो, तुझ पणामोवि फलो होइः॥
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