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________________ महल के गव्य वाले या भाग में यह गादीनामा दिने गरे । उम चोर को एक दिन दिया भोजनगो नाममाRMEETri. और उस महान में गोने के न या मार मार वारांगनाएं जो माँग गुन्दरी और नवीना दी .. hifal चोर उस महल में जाते ही दिन में गश में मोगा ! अनारमा भेद जानने में लिए महल में यारि गरे। रोहिणिया को गहरी नींद पान नगरे । गोर पहर में उनकी नीद नली, और उगमा मालमहो पा fr ओह, यह तो या गुन्दर महल है और बांगर मी ती पार नोनाएं मेरे चारो और नमी हैं ? उन्हें देगार राह गुर थिमिमा हुदा और सोचने लगा कि मैं कहा और ये मिया नीन है ? सभी जनपदों में प्रता कि आपने पूर्वभव में नया दान दिया है ? अथवा भीरपाना किया, अथवा तपस्या की है अथवा तिग धर्म की आराधना की है. निमगे frTT इन स्वर्ग लोश में आये हैं ? और हमारे स्वामी बने हैं ? 4 गुनार गतिजिया सोचने लगा कि क्या मैं मरमार स्वर्ग लोग लाशहनाई और से अमन मेरी सेवा के लिए उपस्थित? तने में जमानमा घिनन तर गया और वह पूरे होश में आगगा। सब उगने अपने दिमागगरियर पर गोगा कि यह स्वर्ग नहीं है और न ये अपरागएं ही है किन्तु यह तो अमयागार का पड्यंत्र सा ज्ञात होता है। तभी उस भगवान महावीर की राना मगनी वे चारों बातें याद आई कि देवता भूगि का स्पर्ग नहीं करते। सो ये तो चारों ही भूमि पर खड़ी हुई हैं। देवता ने नहीं दिमकारने, नो ये तो नेत्रों को टिमकार रही हैं। देवताओ के शरीर की प्रतिच्छाया नहीं पड़ती है, सो इनके शरीर की प्रतिच्छाया भी पड़ रही है और इनो गले की मालाएं भी मुरक्षा रही है। अतः निश्चय से ये देवियां नहीं है, किन्तु मनुष्यनी ही हैं । मैंने लोगों से सुना है कि भगवान महावीर के वचन अन्यथा नहीं होते हैं। इसलिए न मे मरा हूँ, नही यह स्वर्ग है और न ये देनिया ही हैं। मैं बही रोहिणियां चोर ही हूं। न मैंने कभी दान दिया है, न शील पाला है और नही धर्म की आराधना ही की है। तब निश्चय ही मेरा भेद लेने के लिए अभयकुमार ने यह कपट जाल रचा है। यह सोचकर वह प्रकट में उन देवियों ने बोला-मैने हजारों व्यक्तियों की सेवा की है, तव यह स्वर्ग मिला है और आप लोगो को पाया है । तब उन स्त्रियों ने पूछा- स्वामिन्, आपने पूर्वभव में कभी कोई भूल भी तो की होगी ? रोहिणिया बोला---देवियो, मुझे कभी ऐमा अवसर ही नहीं आया कि मैं उत्तम कार्य को छोड़कर जघन्य कार्य करता। इस प्रकार
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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