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मन भी धवल रखिए ।
सेठ को यही दुष्प्रवृत्ति घर कर रही है । ऐसा प्रतीत होता है कि आज के धनलोलुपो के शरीरो मे धवल सेठ की आत्मा मानो प्रवेश कर गई है। भाई, यदि आप लोगो के दिलो पर उसका कुछ असर आ गया हो तो उमको दूर कर दो, जिससे कि आप लोगो का जीवन श्रीपाल के समान सुन्दर बन जाय ।
हा, तो मैं आप लोगो से धवल मेठ के ऊपर कह रहा है। उसका नाम या धवल । धवल कहते हैं उज्ज्वल सफेद को, कि जिसमे किसी भी प्रकार का कोई दाग या घव्वा न हो । उस सेठ का नाम तो धवल था, परन्तु भीतर से वह विलकुल काला था। जो वस्तु ऊपर से धोली और भीतर से काली होती है वह क्या हमारे लिये लाभ-दायक होती है ? नहीं होती है। वह तो सदा हमारे लिए हानिकारक ही होती है 1 कहा भी है कि है कि
मन मैला तन ऊजला, जैसे बगुवा देख ।
बगुवा से कगवा भला, बाहिर भीतर एक ।। मर, जिसका मन तो मैला है, भीतर से काला है और ऊपर से उजला है, ऐसा बगुला किस काम का। उसकी दृष्टि तो सदा मछली के पकडने मे रहती है ! उससे तो कागला भला है जो बाहिर और भीतर एक सा काला है । वह बाहिर अपना सुन्दर रूप दिखा करके दूसरो को धोखा तो नहीं देता है । परन्तु जो ऊपर से अपना धवल रूप दिखा करके भीतर से धन-घात, प्राण-घात आदि की ताक में रहता है, ऐमा व्यक्ति तो भारी खतरनाक होता है, ऐसे लोगो से सदा दूर रहना चाहिए। जो कहते कुछ और है और करते कुछ और ही है-- इस प्रकार जिनकी कथनी और करनी में अन्तर है, जिनके विचार और है और आचार और है, वे लोग स्वय तो विनष्ट होते ही हैं, साथ मे औरो का भी सत्यनाश कर जाते हैं ।
मेरे सज्जनो, आप लोगो को यह जैन धर्म मिला, जो भीतर वाहिर सब ओर से उज्ज्वल है। और यह महाजन जाति मिली वह भी उज्ज्वल है । महाजन नाम वडे आदमी का है। और फिर आपको निर्लोभी त्यागी गुरु मिले हैं, तो ये भी उज्ज्वल,आपका खाना-पीना भी उज्ज्वल है। जव इतनी बातें आपके पास उज्ज्वल है, तब फिर यदि मन मे मैलापन रह जाय, तो क्या यह लज्जा की बात नहीं है ? जिनके पास सर्व प्रकार के उत्तम साधन है फिर भी यदि वे काले रह जाये, तो हम कैसे उन्हें अच्छा कह सकते हैं और कैमे उन्हे उत्तम उपाधि दे सकत है ? हम यदि पूर्व काल की पौराणिक कथाओ का और वतमान काल की कथाओ का तुलनात्मक अध्ययन करे तो दोनो मे आकाश