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प्रवचन सुधा
और अनेक गांवों को फरसते हुये कालू पधारे। वहां पर सैकड़ों घर दिगम्ब रियों के और ओसवालों के थे । वहां पर पाटनियों की एक हताई थी, वे वहां पर बातापना लेते थे । कालू के चारों ओर नदी और तीन चौक हैं। एकवार आप लीलडिये चौक की ओर पधारे और नदी में आतापना ले रहे थे । उनके त्याग और तपश्चरण का वर्णन नहीं किया जा सकता है । जब वे आतापना ले रहे थे तव रामा नाम का जाट अपने बेरे पर जा रहा था । उसके हाथ में रस्सी थी और देवला कंधे पर था । उसने इन्हें नदी में लोटते हुये देखा तो सोचा कि ये नदी में तपस्या कर रहे हैं और महाजनों के पास धन है तो ये उनका ही भला करते हैं । ये तपस्या करते हैं. तो हमारे किस काम के हैं ? ऐसा विचार कर उन्हें रस्सी से पीटा और देवले से टांग पकड़ कर घसीट कर कांटों में डाल दिया । परन्तु वे तो समता के सागर और दया के पुंज थे। तभी तो कहा है
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राख सके तो राख, क्षमा सुखकारी | ये पाप तापकर दग्ध देख शिवपुर सुखकारी ॥
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जो ऐसे फौजी अफसर थे और जान को जोखम में डाल सकते थे तो वे ही ऐसे दुःख को सहन करते थे । ढीली धोती के बनिये नही सहन कर सकते हैं ।
तो उसने
उधर से जाते हुए एक पुरोहितजी की दृष्टि उन पर पड़ी, गांव में जाकर महाजनों से कहा -- अरे महाजनों, तुम लोग यहां दुकानों पर आराम से बैठे हो और रामा जाट तुम्हारे गुरु को मार रहा है । सुनते हो सव महाजन वहां पहुंचे, तब तक रामा जाट वहां से चला गया था । गुरु महाराज के शरीर से खून वह रहा था और वे कांटों पड़े थे। लोगों ने पास जाकर कहा --अन्नदाता, यह क्या हुआ ? गुरु महाराज ने कुछ उत्तर नहीं दिया | तब हवलदार आया । उसने रामा जाट को बुलाया और उसे जूतों से पीटा | लोग गुरु महाराज को उठाकर के हताई में ले गये और उनकी मलहम पट्टी की । लोग बोले कि उसने गुरु महाराज को बड़ा कष्ट पहुंचाया, तो वह भी सुख में नहीं है, उसके जूते पढ़ रहे हैं । तव पूज्यजी ने कहा- मेरे अन्न-जल का त्याग है । तब जाकर लोगों ने हवालदार से उसे छुड़वाया ! वह रामा जाट आकर के पूज्यजी के पैरो में पड़ा और कहने लगा - मैंने आपको बहुत कष्ट दिया । मुझे आप माफ करे । तव पूज्यजी ने कहा- तु दारू पीने और मास को खाने का त्याग कर दे, तो तेरे सब प्रकार से आनन्द हो जायगा । इस प्रकार उसे नियम दिलाकर पीछे उन्होंने अन्न-जल ग्रहण किया ।