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________________ पापों की विशुद्धि का मार्ग-आलोचना आरोप ___भाइयो, जो भी पुरुष व्रत-नियम लेकर के दुष्कर्म करता है और उनको छिपाता है, अथवा अन्य प्रकार से कहता है, वह किल्विपी देव होता है, वह भव-पार नहीं होता है । किन्तु जो किये हुए पापों की ठीक रीति से आलोचना करता है शुद्ध हृदय से निश्छल होकर गुरु के सम्मुख अपने दुष्कृतों को खोलता है और उनसे प्रायश्चित्त लेता है, वह शुद्ध हो जाता है। । भगवान ने जीवन के अन्त में जो संथारे का~समाधि मरण स्वीकार __ करने का उपदेश दिया है, वह जीवन भर की तपस्या का फल कहा है । यथा-- अन्तः क्रियाधिकरणं तपः फलं सकलदशिन स्तुवते । तस्माद् यावद् विभवं समाधिमरणे प्रतितव्यम् । .सकलदर्शी सर्वज देव अन्तिम समय सर्वपापों की आलोचना करके सथारे को जीवन भरके तप का फल कहते है । इसलिए जब तक होश-हवाश दुरुस्त रहें, तब तक ज्ञानियों को समाधिमरण में प्रयत्न करना चाहिए। उसके लिए ___ कहा गया है कि-- आलोच्य सर्वमेनः कृत-कारितमनुमतं च नियाजम् । . आरोपयेन्महाव्रत मारणस्थायि नि.शेषम् ॥ संथारा को स्वीकार करते हुए सर्वप्रथम निर्व्याज रूप से छल-कपट-रहित होकर कृत-कारित और अनुमोदना से किये हुए अपने सर्वपापों की आलोचना करे । पुन. मरण पर्यन्त स्थायीरूप से पांचों पापों का त्याग करके महाब्रतों को धारण करे। जच मनृप्य वेहोश हो जाय, तव संथारा कराने से कोई लाभ नहीं है। स्वस्थ दशा में बालोचना करके संथारा स्वीकार करना ही सच्चा संथारा ग्रहण कहलाता है । वही पंडितमरण या समाधिमरण कहलाता है। वैसे जब भी मनुष्य संभले और जितना कुछ भी भगवान का नाम-स्मरण कर लेवे, वह भी अच्छा ही है। मैंने आलोचना के लिए पहिला उदाहरण राजा का और दूसरा साधु का दिया है । इनसे आप समझ गये होंगे कि अपने पाप को कहने पर ही मनुष्य शुद्ध होता है । जिसने व्रत लिया, उसी से भूल होती है। जिसने व्रत लिया ही नहीं, वह क्या व्रत भंग करेगा ? साहूकार ही नुकसान उठाता है । दिवालिया को क्या नुकसान होगा ? भाई, जैनमार्ग का यही सार है कि आलोचनापूर्वक संथारा लेकर अपने जीवन को सफल करो। जो समाधिपूर्वक मरण करता है, वह नियम से परभव में सद्गति को प्राप्त करता है । वि०सं० २०२७ असोजसुदि । जोधपुर
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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