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पापो की विशुद्धि का मार्ग-~आलोचना
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कहता रहा कि में हल्फिया कहता हूं कि मैंने आपके खजाने का धन चुराया है
और इसलिए मैं आपका चोर हू, अपराधी हू । मगर राजा ने उसकी बात नहीं मानी । वह निराश होकर अपने घर चला गया और इधर राजा, रानी और राजकुमार भी सोच-विचार मे पड गये ।
एक दिन राजा ने स्वप्न मे देखा कि उसके राजमहल मे एक वडा भारी खजाना है और उसमे अपार धन भरा हुआ है। उस खजाने की चावी जिस व्यक्ति के पास है, वह आकर के कह रहा है कि यह खजाने की चावी लो, और उसमे से जितना धन मैंने लिया है उसे भी सभालो । राजा स्वप्न देखते ही जाग गया और और विचारने लगा कि यह स्वप्न कैसे आया ? कही यह दिन मे उस व्यक्ति के द्वारा कही गई बातो के संस्कार से तो नहीं आया है ? क्योकि 'यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी' अर्थात् जिसकी जैसी भावना होती है, उसे वैसी ही सिद्धि प्राप्त होती है। और स्वप्नो के विषय मे यह भी कहा है कि-'अस्वप्नपूर्व जीवाना न हि जातु शुभाशुभम्' अर्थात् जीवो के आगामीकाल मे होनेवाला कोई भी शुभ या अशुभ कार्य विना स्वप्न आये नही होता है । मत मेरा यह स्वप्न भी सार्थक ही प्रतीत होता है । राजा ने प्रात काल अपने स्वप्न का वृत्तान्त रानी से कहा । तब रानी भी बोली -- महाराज मुझे भी यही स्वप्न आया है। महाराज कुमार ने भी आकर के कहा--आज मैंने ऐसा स्वप्न देखा है। महारानी और महाराज कुमार ने राजा से कहा---उस आदमी का कथन सत्य प्रतीत होता है। हमे उसकी बात मान लेनी चाहिए । मगर राजा ने कहा--दिन मे जो बातें हुई हैं, उनके असर से ही यह स्वप्न आया प्रतीत होता है । अत मै अभी भी उसे चोर मानने को तैयार नहीं हू । इस प्रकार यह दिन निकल गया ।
दूसरे दिन रात मे राजा ने फिर स्वप्न देखा कि कोई व्यक्ति भाकर के कह रहा है---हे राजन । उस व्यक्ति ने अन्न-जल का तब तक के लिए त्याग कर दिया है, जब तक कि तू उसे चोर मानकर उसका सब धन नही लेगा। अत तू उसका धन ले ले। यदि धन नही लेगा और वह मर गया तो उसकी हत्या के पाप का भागी तू होगा। सवेरे उठने पर मालूम हुआ कि इसी प्रकार का रवप्न रानी और राजकुमार ने भी देखा है । जो पुण्यात्मा और सत्कर्मी होते है, उन्हे भविष्य-सूचक सत्य स्वप्न आया करते है । इस दिन भी राजा ने कुछ ध्यान नहीं दिया और यह दिन भी यो ही बीत गया ।