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पापों की विशुद्धि का मार्ग
आलोचना
सज्जनो, शास्त्र कार भव्य जीवों के लिए उपदेश दे रहे है कि अपने आचार में किये गये दोपो की विशुद्धि के लिए प्रायश्चित्त करो। जब तक मनुष्य छमस्थ है-अल्पज्ञानी है-तब तक भूलें होना स्वाभाविक है। यदि मनुष्य से भूल हो गई, तो उसे गुरु के सम्मुख प्रकट करने पर वे क्या करेंगे ? वे आपके दोप के अनुरूप दंड देंगे, या उपालम्भ देंगे। मगर इससे आप शुद्ध हो गये और पापों की या भूलों की परम्परा आगे नहीं दढी। क्योंकि भूल को संभाल करली ! किन्तु जब मनुष्य एक भूल करने के पश्चात् अपनी भूल का अनुभव नहीं करके उसे छिपाने का प्रयत्न करता है, तब वह भूल करके पहिले ही अपराधी बना और उसे छिपाने का प्रयत्न करके और भी महा अपराधी बनता है। यद्यपि वह अन्तरंग मे जानता है कि मैंने अपराध किया है, तथापि मानादि कपायों के वणीसूत होकर वाहिर में गुरु आदि के सामने स्वीकार नहीं करना चाहता है। तथा जिसने अपनी भूल को बताया है, झूठ बोलकर वह उसका भी अपमान करता है। इस प्रकार वह अपराधी स्व और पर का विघातक चोर बनता है । जो स्व और पग्का चोर बनता है, वह परमात्मा का भी चोर है। इस प्रकार वह जानने वाले तीन पुरुपो का अपराधी बन जाता है। ऐसी दशा में भी मनुष्य सोचता है कि हम संमार से पार हो जायेंगे, क्योंकि हमने