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प्रवर गुना
मांसों के आपरेशन के लिए शिविर लगाने का काम प्रागनिया, और लिया-पढ़ी चल रही है। परन्तु जल्दी काम क्यों नहीं होता, क्योक्ति लोगो का सहयोग नहीं है । आप लोगों को व्यर्थ की बातें करने के लिए तो समय मिलता है. परन्तु ममाज का काम करने के लिए समय नही मिलता है, यह आश्चर्य और दुःख की बात है। यही कारण है कि अच्छे काम होने में रह जाते है। इसलिए अब आप लोग एक दूसरे की आलोचना करना नोटे और आगे भावें । यदि आपके बालक और बालिकाएं धर्म को पहिचानेगे तो धर्म की उन्नति होगी और आप लोगों का भी नाम रोशन होगा।
उपसंहार बन्धुयो, आज हमारे चात् मास या अन्तिम दिन है। इतने दिनों तक हम लोगों ने प्रात:काल चोपाई और सूत्र सुनाये और व्यान्यान देकर आप लोगों का कर्तव्य भी बतलाया। बीच-बीच में मैंने अपने हृदय के भाव भी आप लोगों के सामने रचे । कभी कड़वे शब्दों में और कभी मोठे शब्दों में । यद्यपि साधु को मधुर शब्द ही कहना चाहिए। परन्तु कुछ कटु सत्य कहने को जो आदत पड़ गई है, वह अब जा नहीं सकती । पर इस गव मीठे-कढ़ए पाहते समय एक ही भावना रही है कि आप लोगों का कुछ न कुछ भला हो । प्ररा कहने की जो जन्म-जात आदत है, बह जब आज सत्तर-अस्सी वर्ष से ऊपर का होने पर भी नही छूटी तो अब कैसे छूट सकती है ? कटुवी बात कहते हुए मेरे हृदय में आप लोगों के प्रति बैर या द्वप भाव नहीं रहा है। न मैं किसी को नीचा दिखाना चाहता हूं। मेरी तो सदैव यही भावना रहती है कि प्रत्येक जाति और प्रत्येक व्यक्ति ऊँचा उठे 1 आप लोग सामने हैं इसलिए आपसे बार-बार आग्रह किया है और प्रेरणा दी है कि आप लोग आगे आवें । जो आज नवयुवक है, वे वैसे ही न रहें, किन्तु आगे बढ़ें। यदि नवयुवकों में नया खन आ जाय, जोश आ जाय और बूढों को होश आ जाय, तो फिर समाज और धर्म की उन्नति होने में देर नहीं लग सकती है। आज लोकाशाह की जयन्ती पर मैंने जो कुछ अपने विचार रखे है, उन पर आप लोग अमल करने का प्रयत्न करें यही मेरा कहना है ।
भाइयो, चातुर्मास सानन्द समाप्त हो रहा है, यह हमारे आपके सभी के लिए हर्ष की बात है। कल सुखे-समाधे विहार करने के भाव हैं । मेरा यही बार-बार कहना है कि सब लोग संगठित रूप मे रहें । कोई भाई न्यारा नहीं है। सारे सन्त मोतियों की माला है। परन्तु एक शर्त रखो कि महाराज माहब, आप किसी और रहे, परन्त संगठन को बुरा मत कहो। यदि वे श्रमण