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प्रवचन-सुधा
प्रत्याग्यान करके सथारा ले लिया। सात दिन पीछे उनके माता पिता का स्वर्गवास हो गया।
पाटन के अधिकारी पदपर माता पिता के स्वर्गवास हो जाने के पश्चात् भाग्य ने कुछ पलटा खाया और लोकाशाह की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। तव चे अहमदाबाद चले गये। उस समय अहमदावाद को बसान वाला अहमदशाह काल कर गया था और मोहम्मदशाह राज्य कर रहा था। उसने एक बार नगर के जौहरियो को वुलाया साथ मे लोकाशाह को भी । लोकाशाह की रत्न-परीक्षा से प्रसन्न होकर मोहम्मदशाह ने इन्हे पाटन का अधिकारी बनाकर वहा भेज दिया। उन्होंने वहा पर बिना किसी भेद-भाव के हिन्दू-मुसलमानो के साथ एक सा व्यवहार रक्खा, जिससे मोहम्मदशाह ने खुश होकर इन्हें अहमदाबाद बुला लिया और यहा का काम-काज दे दिया। इसी बीच कुछ भीतरी विद्वीप की आग सुलगने लगी । भाई
'जर, जेवर, जोरू, यह तीनो कजिया के छोरु' । जर, जेवर और जोरु ये तीनो लडाई के घर माने जाते है । जहा कही भी आप लोग देखेंगे, इन तीनो के पीछे ही लडाई हुआ करती है। राज-पाट का भी यही हाल होता है । जो भी अधिकार की कुर्सी पर बैठता है, वह किसी को गिराने, विसी को लूटने और समाप्त करने की सोचा करता है । यह कुर्सी का नशा होता है। मोहम्मदशाह का लडका कुतुबशाह था । उसने देखा कि मेरा चाप वुढा हो गया, इतने वर्प राज्य करते हुए हो गये। पर यह तो न मरता ही है और न राज्य ही छोडता है, तब उसने अपने बाप को ही मारने का पडयन्त्र रचा और खाने के साथ उसे जहर दिलवा दिया । और आप बादशाह बन गया। जब इस पड्यन्न का पता लोकाशाह को चला तो उन्हे राज काज से वडी घृणा हुई। वे सोचने लगे कि देखो-जिस के ऋण से मनुष्य कभी ऊऋण नही हो सकता, उस पिता को ही कृतघ्नी सन्तान मार सकती हैं, तो वह औरो के साथ क्या और कौन सा जुल्म नहीं करेगा। उन्होने राज-काज छोड़ने का निश्चय किया और कुतुबशाह के पास जाकर कहाहुजूर, मुझ रजा दी जाय । बादशाह ने पूछा- क्या बात है ? लोकाशाह ने कहा--अब मैं आत्मकल्याण करना चाहता है। राज-काज करते हुए वह सभव नही है। तब बादशाह ने इनके स्थान पर इनके पुत्र पुनमचन्द को नियुक्त कर इन्हे रजा दे दी।