________________
प्रवचन-सुधा
अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत इन वारह श्रावक-श्रतों को स्वीकार किया और भगवान् की बन्दना करके अपने घर आगया।
अब इसकी विचार-धारा एकदम बदल गई। जहां पहिले वह धन के अर्जन और संरक्षण में ही जीवन की सफलता समझता था, वहां वह अब सन्तोष मय जीवन बिताने और धन को पात्र दान देने, और दोन-दुखियों के उद्धार करने में जीवन को सफल करने लगा। उसने अपने आय का वहभाग धार्मिक कार्यों में लगाना प्रारम्भ कर दिया। इससे उसकी चारों और प्रशंसा होने लगी । वह घर का सब काम अलिप्तभाव से करने लगा। जहां उससे पहिले धन के संरक्षण की चिन्ता सताती थी, वह सदा के लिए दूर हो गई। अब उसे सभी लोग अपने परिवार के समान ही प्रतीत होने लगे और वह सबकी तन-मन धन से सेवा करने में ही अपना जीवन सार्थक समझने लगा। धीरे-धीरे देश-देशान्तरों में भी उसका यश फैल गया और वहां के व्यापारी और महाजन लोग आकर उसके ही यहा ठहरने लगे।
जब चम्पा नरेश को ज्ञात हुआ कि सुदर्शन सेठ के त्यागमय व्यवहार के कारण देश में सर्वत्र शान्ति का साम्राज्य छा रहा है और विद्रोह एवं अराजकता का कहीं नाम भी नहीं रहा है, तब वह स्वयं ही सुदर्शन सेठ से मिलने के लिए उनके घर पर गया। राजा का आगमन सुनकर सेठ ने आगे जाकर उनका भर-पूर स्वागत किया और प्रारम्भिक शिष्टाचार के पश्चात उनसे आगमन का कारण पूछा। राजा ने कहा प्रिय सेठ, आपके सव्यवहार और उदार दान से मेरे सारे देश में सुख-शान्ति का साम्राज्य फैल रहा है, मैं तुम्हें धन्यवाद देने आया हूं और आज से तुम्हें "नगर-सेठ' के पद से विभूपित करता हूँ। अब आगे से आप राज-सभा में पधारा कीजिए। सुदर्शन ने नतमस्तक होकर राजा के प्रस्ताव को शिरोधार्य किया। तत्पश्चात् सुदर्शन राजसभा में जाने आने लगे।
पुरोहित को प्रबोध जब राजपुरोहित कपिल को यह ज्ञात हुआ कि मुदर्शन को 'नगर-सेठ' बनाया गया है, तो वह मन ही मन में जल-भुन गया। क्योंकि कपिल तो शुचिमूल धर्म को मानता था और सुदर्शन विनयमूल धर्म को माननेवाला था। अतः उसने अवसर पाकर राजा से विनयमूल धर्म की निन्दा करते हुए कहामहाराज, आपने यह क्या किया ? सुदर्शन तो विपरीत मार्ग का अनुयायी है । इससे तो सच्चे धर्म की परम्परा का ही विनाश हो जायगा । पुरोहित की बात सुनकर राजा ने कहा---पुरोहित जी, यह आपको धारणा मिथ्या है । शुचिका अर्थ है-स्नान करना और कपड़े साफ रखना । परन्तु कहा है कि