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प्रवचन-सुधा हुए ले गये और बोले-लो यह तुम्हारा बेटा आगया? यह सुनकर चौर बोला—मेठजी, मैं तो चोर हूं। मुझे अपना बेटा बना कर क्यो अपनी पैठ गवाते है ? आपको अपना घर आवाद करना है, अथवा बर्बाद करना है ? सेठ ने उमकी कही बात पर ध्यान नहीं दिया और कहा--भाई, तू गत भर का जागा हुया है, अत यहा पर आराम कर । मैं सबेरे फिर बात कम्म गा । अब तू भागने का प्रयत्न मत करना । अन्यथा राजपुरुषो को सौप टूगा। वह कहकर और अपने शयनागार मे लेजाकर उसे सुला दिया । आप भी स्वय आराम करने लगे।
जब सवेरा हुआ तब सेठजी उठे और शीचादि से निवृत्त होकर स्नानादि किया, तथा उस चोर को मी निबटने के लिए कहा। जब वह निबट चुका तव उसे अपने माथ बैठाकर नारता (कलेवा) कराया और उसे अपने माय दुकान में ले गए । वहा जाकर सेठजी ने मुनीम जी से कहा- नगर के अमुकअमुक प्रमुख व्यक्तियो को बुला लाओ। तब सभी प्रमुख पच लोग आगये तो उन्हाने पूछा-कहिए सेठजी, आज हम लोगो को कमे याद किया है ? सेठजी ने सवका समुचित आदर-सत्कार करते हुए कहा --भाग्यो, आप लोगो को ज्ञात है कि मेरे लडकिया तो तीन हैं । पर लडका एक भी नहीं है । यह सुनकर मबने कहा-नब आप किसी के लडके को गोद ले लीजिए। सेठजी दोले ---- मैंने भी यही निर्णय किया है । पचो ने पूछा विस लड़के को गोद लेने का निर्णय किया है ? तव मेठजी ने पाम में बैठे हए चोर की ओर सकेत कर कहा-इसे गोद लेने का विचार किया है। जैसे ही लोगो ने उसकी ओर दृष्टि डाली तो सबके मन सोचने लगे अरे, यह तो नामी चोर है । इमे सेठजी गोद कसे ले रह हैं। पर मुख से स्पष्ट नही कह कर बोले- आपकी परीक्षा मे कसर नहीं है, पर अभी जल्दी क्या है ? सेठ बोला-भाइयो, मैंने भलीभाति से परीक्षा कर ली है । आप लोगो की राय लेने के लिए बुलाया है। यह सुनकर पच लोग एक-एक करके खिसक गये । सेठ ने भी सोचा-आफत टली।
तत्पश्चात् सेठ न ज्योतिपी को बुलाया। उसके आने पर कहा---गोद लेने के योग्य अच्छा मुहूर्त वतामो । ज्योतिपी ने पूछा-सेठजी, किसे गोद ले रहे हैं। मेठजी न इशार से बताया-इसे। उसे देखते ही ज्योतिषि बोला-अभी तो बहुत दिनों तक कोई अच्छा मुहर्त नही निकलता है। सेठजी बोलेपडितजी, नापने ज्योतिप का भली-भाति से अध्ययन नही किया है। अरे, अगिराचार्य कहते हैं कि जब मन मे उल्लास हो, तभी मुहूर्त है। मेरे मन मे