________________
२५
आर्यपुरुष कौन ?
आर्य के भेद : भाइयो, अभी तक आपके सामने मुनिजी ने आर्यपुरुप के गुण बताये । पर 'आर्य' शब्द का क्या अर्थ है, यह भी आपको ज्ञात होना चाहिए । आर्य शब्द की निरुक्ति करते हुए कहा गया है -
'अर्यन्ते गुणगुणवद्भिर्वा सेन्यन्ते इत्यार्याः' । अर्थात्-जो गुणो से गुणवानों के द्वारा सेवित होते हैं, वे आर्य कहलाते है । विद्यानन्द स्वामी ने इसी बात को स्पष्ट करते हुए कहा है
सद्गुण गुणैरर्यमाणत्वाद् गुणवद्भिश्च मानवैः ।
प्राप्तझैतरभेदेन तत्रार्या द्विविधा. स्मृताः ॥ , जिनके भीतर मानवोचित सद्गुण पाये जाते हैं, अतः जो गुणवान् मानवों के द्वारा उत्तम कहे जाते है, वे आर्य कहलाते हैं। ऐसे आर्यपुरुप दो प्रकार के होते हैं—ऋद्धिप्राप्त आर्य और अनुद्धिप्राप्त आर्य । जिनको तपस्या के प्रभाव से अनेक प्रकार की ऋद्धि या लब्धि प्राप्त होती है, वे अलौकिक गुण प्राप्त ऋपिगण ऋद्धिप्राप्त आर्य कहलाते हैं । तथा जिन पुरुषों मे सुजनता, सहृदयता, कारुणिकता और दानशीलता आदि विशिष्ट लौकिक गुण पाये जाते हैं, वे अनृद्धिप्राप्त आर्य कहलाते हैं ।
उक्त व्याख्याओ के अनुसार यह अर्थ फलित होता है कि आर्य का शब्दार्थ श्रेष्ठ पुरुप है और अनार्य का अर्थ नेष्ट पुरुष है। जिनका व्यवहार एवं
२८