________________
२७८
प्रवचन-सुधा
ज्ञान का सन्मान पुराने जमाने में निमित्त विद्या का प्रसार था और लोग ज्योतिप और निमित्तशास्त्र को पूर्ण रूप से अधिकारी गुरु से पढ़ते थे। तब उनका शुभाशुभ फल-कथन सत्य सिद्ध होता था । आजकल प्रथम तो इस ज्योतिप विद्या के विशिष्ट अभ्यासी व्यक्ति ही नहीं है। जो कुछ थोड़े से जहां कही हैं, तो लोग उनके परिश्रम का समुचित मूल्यांकन भी नहीं करते हैं। कितने ही लोग मुफ्त में ही विना कुछ दिये लग्न आदि को पूछने पहुंचते हैं। ऐसे लोग यह भी नहीं सोचते हैं कि ज्योतिपी के इसके सिवाय आमदनी का और कोई धन्धा नहीं है, फिर हम मुफ्त में क्यों पूछे ! ज्योतिपी भी देखते हैं कि यह खाली हाथ ही पूछने आया है, तो वे भी उसे यों ही चलता हुआ सा लग्न समय आदि बतला देते हैं। आप लोग मुकद्दमे आदि के वावत वकील से सलाह लेने को जाते हैं तो उसे भी भरपूर फीस देते हैं। पर जिस लड़के या लडकी के विवाह-सम्वन्ध की लग्न पूछने जाते हैं, जिसका कि सम्बन्ध दोनों के जीवन भर के सुख-दुःख से है, जिनके विवाह में आप हजारो और लाखों रुपये खर्च करते है अनर्थक कार्यों में पैसा पानी की तरह बहाते हैं, उसी का लग्न निकलवाने में ज्योतिपी को कुछ भी नहीं देना चाहते, या सवा रुपया में ही काम निकालना चाहते हैं। भाई, चाहिए तो यह कि आप ज्योतिषी से कहें कि आप लड़के और लड़की दोनों की कुडलियों को देखें कि वे शुद्ध और सही है, या नहीं? यदि अशुद्ध हो तो उसे जन्म समय वताकर शुद्ध करके मिलान करके लग्न निकालने के लिए कहिये और साथ में कहिये कि आपकी समुचित सेवा की जायगी। हम आपको भरपूर पारिश्रमिक भेंट करेगे । आपके ऐसा कहने पर ही ज्योतिपी समुचित परिश्रम करके ठीक लग्न वतायगा और यदि किसी के क्रूर ग्रह होने से मेल नहीं बैठता होगा, तो वह मना भी कर देगा। पर यह तभी संभव है जबकि आप उसे भरपूर पारिश्रमिक मेंट करें। आज लोग सवा रुपया और नारियल देकर ही सारे जीवन की मंगल-कामना के प्रश्न पूछते है. तो भाई, वे भी चलता उत्तर दे देते हैं। आप जितना दोगे, वे उतनी ही मेहनत करेंगे।
सिवाने में भरतविजय नाम के गुरांसा थे। उनके पास लाख-दो लाख की पूजी भी थी। फिर भी लोभ अधिक था किन्तु ज्योतिपी बहुत ऊंची श्रेणी के थे। जब कोई व्यक्ति उनके पास विवाह की लग्न निकलवाने जाता, तो वे पुछते थे कि कितनेवाला लग्न देखना है-सवा रुपये वाली या कुछ और अधिक की । वे एक लग्न देखने के पच्चीस रुपये लेते थे। उन्हें यदि