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धर्मादा की संपत्ति
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अर्थात्-जिनका पुण्य बीत जाता है, विपत्तियां उनके पीछे रहती हैं उन्हें कही से लाना नहीं पड़ता। संसार में सम्पत्ति यां पुण्य की अनुगामिनी हैं और विपत्तियां पाप की सहचरी हैं।
अव सेठानी ने देखा कि दिन बदल गये हैं और जिस घर में हमने अमीरी के दिन देवे हैं तो उस घर में अब इस गिरी हालत में रहना ठीक नहीं। उनका चित्त भी वहां नही लगता था। अत: वे बह और पोते को लेकर बगीचे के बंगले में चली गई और वहीं धर्मध्यानपूर्वक अपना शेप जीवन-यापन करने लगी। नौकर-चाकरों का जो विशाल परिवार था, उसे छुट्टी दे दी । केवल दो-तीन परिचारिकाएँ भीतरी काम को रखीं और बंगले के पहरे वा बाहरी काम के लिए दो नौकर रखे। भाई, कहावत है कि यदि 'दाल जल भी जाय, तो भाजी बरावर फिर भी रहती है। तदनुसार गरीवी याजाने पर भी उनके सीमित परिवार के निर्वाह के योग्य सम्पत्ति फिर भी शेष थी, सो सेठानीजी उससे अपनी गुजर करती हुई रहने लगी । इतनी अधिक दशा विगड़ने पर उन्होंने उस सुकृत के द्रव्य की ओर मन को नहीं चलाया-जव कि वे उसी के ऊपर रह रही थीं। पोते के पालन-पोषण और पढ़ाई-लिखाई का उन्होंने पूरा ध्यान रखा और धीरे-धीरे वह पढ़ लिखकर होशियार हो गया।
इन्हीं दिनों की बात है कि बादशाह की सभा में चर्चा चली कि दिल्ली में यह कहावत क्यों प्रसिद्ध है कि 'पहिले शाह और पीछे बादशाह ।' कहीं बादशाह भी किसी के पीछे होता है ? अतः उसने वजीर को हुक्म दिया कि इस कहावत के प्रतिकूल यह हुक्म जारी कर दो कि मागे से यह कहा जाय कि 'पहिले बादशाह, पीछे शाह' । वजीर ने कहा-जहांपनाह, दिल्ली में यह कहावत पीटियो से चली आ रही है उसे बदलना अपने हाथ की बात नहीं है। यह तो जनता के हाथ की बात है। वह बदलेगी, तभी सभव है, अन्यथा नही । बादशाह ने कहा-अच्छा. शहर के सभी कौमों के खास-खास लोगों को बुलाया जाय । वजीर ने सबको बुलाया। जब वे लोग बादशाह का मुजरा करके बैठ गये तो वादशाह ने उनसे कहा-मैं यह कहावत वदलना चाहता हूं। सबने कहा- हुजूर, यह पुराने वक्त से चली आ रही है फिर इसे क्यों बदला जाय ? फिर भी यदि आप वदलना ही चाहते हैं, तो जो लोग शाह पदवी के अधिकारी हैं, उन लोगों को बुलाकर कहा जाय । यदि वे लोग बदलना चाहें तो यह बदल सकते हैं । बादशाह ने दूसरे दिन शाह पदवी के धारको को बुलाया और उनसे पूछा कि आपके पूर्वजों ने ऐसा नया बड़ा काम किया है कि जिससे यह कहावत चली