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प्रवचन-सुधा
बड़ी-बढ़ी डिग्रीधारी मनुष्य सरकार से कहते है कि हमें रोजी और रोटी दो। ऐसे नवयुवकों और पढ़े-लिखे लोगों को धिक्कार है जो रोजी और रोटी के लिए ही दूसरों का या सरकारी साधनों के विनष्ट करने में और हो-हल्ला मचाने में लगाते हो, वही यदि किसी निर्माण कार्य में लगाओ तो तुम्हारा वेडा पार हो जाय ।
वैकार मत बैठो, पुरुषार्थ करो! एकबार एक नौजवान ने, पुरुपार्थी बनने की बात कहनेवाले पुरुष से पूछा बताइये, मैं पढा-लिखा हूं और हर काम को करने के लिए तैयार हूं
और बेकारी के कारण भूखो मर रहा हूँ क्या काम करूं? उसने तुरन्त उत्तर दिया कि भाई, पढे-लिखे होने पर भी यदि तुम्हें कोई काम नहीं सूझता है
और भूखे मरने की नौबत आ गई है, तो सवेरे उठते ही यह काम करो कि एक वुहारी लेकर अपने घर से निकलो और अपने घर का द्वार साफ करके लगातार हर एक व्यक्ति के घर का द्वार साफ करते हुए चले जाओ । दूसरे की ओर देखो भी नहीं ? जब कोई पूछे कि यह काम क्यों कर रहे हो तो कहो कि बेकार बैठे भूखों मरने से तो कुछ काम करते हुए मरना अच्छा है । फिर देखो शाम तक तुम्हें रोटी खाने को मिलती है, या नहीं । वह नवयुवक वोला—हाँ, रोटी तो मिल सकती है । पर यह तो नीचा काम है, मैं पढ़ा-लिख। व्यक्ति इसे कैसे कर सकता हूं। उसने कहा--भाई, यही तो तेरी भूल है कि अमुक काम वुरा या नीचा है और अमुक काम अच्छा है। इस अहंकार को छोड़कर जहां जो भी काम मिले, उसे उत्साह से करते रहो, कभी भूसे नहीं मरोगे । यह सुनकर वह नवयुवक चुप हो गया ।
__ श्रम करे, श्री पायें ! भाइयो, वेकार वे ही फिरते हैं जो कि आराम की कुर्सी पर बैठना चाहते हैं। और परिश्रम से, खासकर शारीरिक परिश्रम से डरते हैं । यदि आज के वेकार नौजवान कुर्सी पर बैठने और शहरों में रहने के मोह को छोड़ गांवों में जा और शारीरिक परिश्रम करें, तथा अशिक्षित लोगों को शिक्षित करते हुए भारत के प्राचीन उद्योग-धन्धों को अपनायें तो उनके वेकार होने की समस्या सहज मे ही हल हो सकती है। इन नौजवानों को चाहिए कि वहां पर जो भी काम मिले, उसे करने में तन-मन से जुट जावें, फिर वे देखें कि आर्थिक सहायता उन्हें अपने आप मिलती है, या नहीं ? जब वे काम करने को ही तैयार न हों तो फिर उन्हें सहायता कौन आकर देगा ! जो श्रम करेगा उसे श्री लक्ष्मी) अपने आप आकर मिलेगी। देखो-पानी