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प्रवचन-सुधा
विदेशी वैज्ञानिक एक-एक वस्तु का परीक्षण करने में लग रहे हैं और उनके गुण-धर्मों का महत्व संसार के सामने रख रहे है, तभी भौतिक उन्नति से आज सारा संसार प्रभावित हो रहा है। पहिले यदि किसी प्रसूता स्त्री के दूध की कमी होती थी तो सीपियों के द्वारा बच्चे के मुख में दूध डालकर बड़ी कठिनाई से उसका पेट भरते थे । आज उन वैज्ञानिकों ने रबर की ऐसी वस्तु तैयार कर दी है कि बच्चा हंसते हुए स्तन को चूसते हुए के समान दूध पीता रहता है । भौतिक विज्ञान ने आज भौतिक-सुख के असंख्य साधन संसार को तैयार करके दे दिये हैं और देते जा रहे हैं । फिर भी लोगों के हृदयो में सुख-शान्ति नहीं है। सुख-शान्ति की प्राप्ति के लिए हमारे सर्वज्ञों और उनके अनुयायी महपियों ने अनेक आध्यात्मिक साधन भी बताये हैं, पर हम उस ओर से भी उदासीन हैं। आज सारा संसार उस आध्यात्मिक शान्ति को पाने के लिए लालायित है और ससार को ज्ञान प्रदान करनेवाले भारत की ओर आशा भरी दृष्टि से देख रहा है। हम संसार को सुख-शान्ति का भी अपूर्व सन्देश दे सकते हैं, पर हमारा इस ओर भी कोई ध्यान नहीं हैं।
कमी साहित्य-की नहीं, अध्ययन को है भाइयो, हमारे सन्तों और पूर्वजों ने तो सर्व प्रकार के साधनों का उपदेश दिया और सर्व प्रकार के शास्त्रों का निर्माण किया है। यदि आप शान्त-रस का आनन्द लेना चाहते हैं, तो उसके प्रतिपादक ग्रन्थों को पढिये । यदि आप वराज्य और अध्यात्म रस का आस्वाद लेना चाहते है तो अध्यात्म शास्त्रों को पढ़िये । यदि आप वस्तु स्वरूप का निर्णय करने के इच्छुक हैं तो न्यायशास्त्रों का अध्ययन कीजिए और यदि सदाचार का पाठ सीखना चाहते हैं तो आचारविपयक शास्त्रों का स्वाध्याय कीजिए । कहने का अभिप्राय यह है कि हमारे यहां किसी भी प्रकार के साहित्य की कमी नहीं है । परन्तु हम जब उनका अध्ययन ही नहीं करते है तव उनके लाभ से वंचित रहते हैं और हमारी प्रवृत्तियों को देखकर संसार भी यही समझता है कि यदि इन जैनियों के पास कोई उत्कृष्ट साहित्य होता तो ये क्यों नहीं उसका आनन्द लेते । इस प्रकार हमारी ही अकर्मण्यता और उदासीनता से न हम ही उनका आनन्द लेने पाते हैं और न दूसरो को ही वह प्राप्त हो पाता है । ससार तो गतानुगतिक है । एक व्यक्ति जिस मार्ग से जाता है, दूसरे लोग भी उसका अनुगमन करते हैं । तभी तो यह उक्ति प्रचलित है कि--गतानुगतिको लोकः ।
बन्धुओ, जरा विचार तो करो-एक साधारण भोजन बनाने के लिए भी आग, पानी, वर्तन, और भोज्य सामग्री आदि कितनी वस्तुओं की आवश्यकता