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विज्ञान की चुनौती
बन्धुओ, विज्ञान आज हमको चुनौती दे रहा है। जैसे किमी समृद्धिशाली व्यक्ति का पुत्र लापरवाही से अपनी सम्पत्ति को वर्वाद करे और उसके संरक्षण की ओर ध्यान न देवे तो दुनिया उसे उपालल्भ देती है कि तू अमुक ऋद्धिसम्पन्न व्यक्ति का पुत्र होकर के भी यह क्या कर रहा है । उसी प्रकार से आज के वैज्ञानिक लोग भगवान के विज्ञान-सम्पन्न जैन धर्म के अनुयायी कहे जाने वाले अपन लोगो को चुनौती देकर कह रहे हैं कि तुम्हारा यह ज्ञान उच्च कोटि का है और विज्ञान से परिपूर्ण है । फिर भी तुग लोग उस ज्ञान का उपयोग नहीं कर रहे हो । देखो-भगवान महावीर ने शब्द को मूर्त पुद्गल का गुण कहा था, जब कि प्रायः सभी मतावलम्बियों ने उसे अमूर्त आकाश का गुण माना है। आज टैप-रिकाडों और ग्रामाफोन के रिकार्डो मे भरे जान से, तथा रेडियो स्टेशनों से प्रसारित किये जाने और रेडियो के द्वारा सुने जाने से उसका मूर्त पना सिद्ध हो गया है। संसार के सभी दर्शन वनस्पति को जड या अचेतन मानते थे, किन्तु जैन दर्शन ही उसे सचेतन और उच्छ्वास प्राणादि से युक्त मानता था । सर जगदीशचन्द्र बोस ने यत्रों द्वारा उसको श्वासोच्छवाम लेते हुए प्रत्यक्ष दिखा दिया है । इस प्रकार विज्ञान-वेत्ता लोग जैन धर्म के एक-एक तत्त्व को विज्ञान की कसौटी पर कस-कस करके उसकी सत्यता को यथार्थ सिद्ध करते जा रहे है और हम जैन धर्मानुयायी अपने ही धर्म-सम्मत तत्त्वो के प्रकाश के लिए कुछ भी नही कर रहे है । क्या यह
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