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प्रतिसंलीनता तप
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श्रेणिक ने कहा- मेतार्य, यह उपदेश तो पीछे देना । पहिले यह बता कि क्या यह वकरी सोने की मेंगनी देती है ? मेतार्य ने कहा—हां, महाराज, देती है और ऐसा कह कर जैसे ही बकरी की पीठ पर अपना हाथ फेरा, वैसे ही वह सोने की मेंगनी देने लगीं। यह देखकर श्रेणिक बड़े विस्मित हुए और सोचने लगे कि यह करामात तो बकरो में नहीं, किन्तु मेतार्य के हाथ में है। तब श्रेणिक ने कहा- कुमार, अब तो शान्ति है ? मेतार्य वोला--महाराज, अभी तो मैं बहुत कुछ करूंगा, क्योंकि आपने मेरी बकरी को पकड़ करके मंगवायो है। श्रेणिक ने कहा- अच्छा कुमार, आपस में फैसला कर लिया जाय। मेतार्य ने कहा- महाराज, यदि आप अपनी पुत्री की शादी मेरे साथ करने को तैयार हों, तो मैं भी आपके साथ फैसला करने को तैयार हूं, अन्यथा नहीं। तव अभयकुमार ने कहा-महाराज, यह प्रस्ताव तो उचित है क्योंकि मेतार्य सर्वाङ्ग सुन्दर है, भाग्यशाली है और अपने नगर के सर्वश्रेष्ठ श्रेष्ठी का सुपुत्र है, जो इस समय सब सेठों में सर्वाधिक धनी है । जहां सब कुछ है । भाई, लक्ष्मीवान् पुरुप जो इच्छा करे, वही पूर्ण हो जाती है । कहा भी है -
'सुकृतीनामहो वाञ्छा सफलैव हि जायते'। अर्थात् - जिन्होंने पूर्वजन्म में सुकृत किया है, उन भाग्यशालियों की इच्छा सफल ही होती है । फिर जिसके पास धन है, उसकी तो बात ही क्या कहना है ? कहा भी है -
लक्खन नहीं है फूटी कौड़ी का, तो भी सेठजी बाजे रे । छाती देवे फाढ़ जाति में जोर से गाजे रे, काममि गारो रे ।
यो पैसो जग में अजब झूठो घुतारो रे ।। भाइयो, धन का तो जादू ही न्यारा है । जिसे धोती बांधने का भी तमोज नहीं है, बोलने का भी हौसला नही है और कपड़ा भी पहिनना नहीं आता है, फिर भी यदि पैसा पास में होवे तो सभी लोग सेठ साहूकार कहकर सम्मान करते हैं। यदि पैसा पास में होता है तो छाती बाहिर निकल आती है, आंखें आसमान में लगी रहती हैं। अभिमान से सिर अकड़ा रहता है और जातिसमाजवालों को कुछ समझता ही नहीं है । आज पैसे का माहात्म्य कितना वढ गया है कि मनुष्य अपनी प्यारी पुत्रियो का भी विवाह अन्धे-काने, भुलेलंगड़े और चार दिनों में ही जिनकी अर्थी निकलने वाली होती है, ऐसे रोगग्रस्त धनवान व्यक्तियों के साथ भी कर देते है । आपके यहां भी बीमार को लड़की परणाई है । महापुरुषों ने ठीक ही कहा है-'द्रव्याश्रया नि गुणा गुणाः'