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विचारों की दृढ़ता
भाइयो, जनशासन में विचारों का बड़ा महत्व है। पुण्य-पाप और वन्धमोक्ष सब कुछ विचारों पर अपने भावों पर ही अवलम्वित हैं । शास्त्रों में प्रश्न उठाया गया है कि---
जलेजन्तुः स्यलेजन्तुराकाशे जन्तुरेव च।
जन्तुमालाकुले लोके कयं भिक्षुरहिसकः । अर्थात्-जल मे जीव हैं. स्थल में जीव है और आकाश में भी जीव है। यह सारा ही लोक जीवों की माला से आकुल है-भरा हुमा है ? फिर इसमे विचरता हुआ साधु अहिंसक कसे रह सकता है ? इसका उत्तर देते हुए कहा गया है कि
विष्वक् जीव चिते लोके क्व चरन् कोऽप्यमोक्ष्यत ?
भावैकसाधनो बन्ध-मोक्षी चेन्नाभविष्यताम् ।। अर्थात् -- हे भाई, तेरा कहना सत्य है। किन्तु कर्मों के वन्ध और मोक्ष की व्यवस्था भावों के ऊपर अवलम्बित हैं। यदि मनुष्य के भाव हिंसारूप है, तो वह अवश्य कमों से बंधेगा, और कभी भी संसार से नहीं छूट सकेगा। किन्तु जिसके भाव शुद्ध हैं, जीवों की रक्षा के हैं-यतनापूर्वक उठता है, बैठता है, और यतनापूर्वक ही भोजन, भाषण आदि करता है, तो वह जीव कर्मों से नहीं बंधता है।
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