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प्रवचन-सुधा
एक ठाकुर के पास एक गाय और उसका एक बछड़ा और एक मेंढा था। वह मेंढे को खूब बढ़िया खाना खिलाता-पिलाता और उसे प्रतिदिन नहलाता-धुलाता था । बछड़ा प्रतिदिन यह देखता और मन ही मन में सोचता कि मालिक इस मेंढ़े को तो बढ़िया खाना देता है और मुझे यह सूखी घास खाने को देता है । एक दिन उस वछड़े ने अपनी माता से कहा-तव माता ने कहा-वत्स, तू नही जानता, इसे मार कर खाने के लिए मोटा-ताजा किया जा रहा है, किसी दिन इसके गले पर छुरी चलेगी और यह ठाकुर के मेहमानो का भक्ष्य बन जायगा । कुछ दिन बाद ठाकुर के घर कुछ मेहमान आये और वह ठाकुर छुरी लेकर उसे मारने आया। यह देखकर बछड़ा बहुत भयभीत हुआ । तव उसकी मां ने कहा -- "बेटा, तू मत डर । जिसने माल खाये हैं, वही मारा जायगा ।' थोड़ी देर मे बछड़े के देखते-देखते ठाकुर ने उसके गले पर छुरी चलाकर उसे मार डाला और उसका मांस पका कर मेहमानों को परोस दिया।
इस दृप्टान्त का अभिप्राय यह है कि जो साधु रस का लोलुपी होता है भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार न करके अपने शरीर को पुष्ट करता रहता, उसे भी एक दिन दुर्गति में जाकर दूसरों का भक्ष्य बनना पड़ता है। भगवान ने कहा
जहा खलु से उरखने आएसाए समीहिए ।
एव वाले अहम्मिट्ठ ईहई नरयाउयं ॥ अर्थात्-जैसे मेहमानों के लिए माल खानेवाला मेढा मारा जाता है, उसी प्रकार अज्ञानी जीव अभक्ष्य-भक्षण कर और शरीर को पुष्ट कर नरक के आयुष्य की इच्छा करता है। इसलिए हे भव्य पुरुषों, तुम्हें रसका लोलुपी, और परिग्रहक संचय करने वाला नहीं होना चाहिए ।
जहां लाम वहाँ लोभ आठवां कापिलीय अध्ययन है । इसमें बतलाया गया है कि कपिल नामक एक ब्राह्मण दो माणा सोना प्राप्त करने के निमित्त राजा के पास सर्व प्रथम पहुंच कर आशीर्वाद देने के लिए रात को ही राज महल की ओर चल दिया और राज पुरुषो के द्वारा पकड़ा जाकर राजा के सामने उपस्थित किया गया । राजा ने उससे रात्रि में राजमहल की ओर आने का कारण पूछा। कपिल ने सहज व सजल भाव से सारा वृत्तान्त सुना दिया। राजा उसकी सत्यवादिता पर बड़ा प्रसन्न हुआ और बोला--ब्राह्मण, मैं तेरे सत्य बोलने पर बहुत प्रसन्न हूं। तू जो कुछ मागंगा, वह तुझे मिलेगा । कपिल ने कहा--राजन्, सोचने के