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प्रवचन-सुधा
भाइयो, पाप का फल ऐसा है कि मोते हुए तारे दिपते हैं । और इस कैसी कि आडे की और सोते भी कूदे। फिर उसकी झोपडी कमी कि बरसात बरसे एक घदी, ठाण चर्व वारा धडी' । कमी इधर से काला साप निकल पड़ता है, तो कभी उधर से विच्छू निकल रहे हैं। खाट का एका पाया टूल हुया है, विछाने को एक पुराना गूदडा है, जिसमे चाचड, माकड, जूवा और लीखे भरी हुई हैं। जिन के कारण एक क्षण को भी रात में नीद नहीं ले सकते । फिर स्त्री कैसी ? काली-बालौटी और कर्कशा । बोले तो बिजली मी कडके । रमोडा कैसा कि एक भी सावित हडी तक भी उसमे नहीं हैं । ऐमी घर की दशा को देखकर मन्त ने कहा अरे भाई, अब तो धर्म माधन करो। पूर्व वरी करनी के फल से तुम्हें ऐसी सामग्री मिली है। अब कुछ दिन भली करनी कर लो नो इससे छुटकारा मिल जाय । और अगले जन्म मे सब सुखमयी सामग्री मिल जाय । यह सुनकर वह बोला -- मेरे घर मे क्या कमी है ? सब प्रकार की सुख मामग्री है। आप किसी और को उपदेश दीजिए और मेरे ऊपर कृपा कीजिए। यह सुनकर वे सन्त चुपचाप वापिस चले आये ।
भाइयो, जिनकी होनहार बुरी है उन अभागियों के लिए मुनि जन भी क्या कर सकते है ? उनसे भली बात भी कही जाय तो वे बुरा मानते है। अमृत तुल्य भी शिक्षा उन्हे विष-तुल्य प्रतीत होती है। ऐसे लोगो के लिए समझना चाहिए कि अभी तक इन के दिन अच्छे नहीं है। जिन की होनहार अच्छी होती है, वे राजसी वैभव को भी छोडकर धन्नाजी के समान घर-बार छोडकर आत्म-कल्याण मे लग जाते है । इसलिए हमको अपने भीतर उत्साह जागृत करने की आवश्यकता है। वि० स० २०२७ कार्तिक वदी ८
जोधपुर