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अक्ख
य..
अक्षय, नाश रहित ... . अव्वाबाहं .
अव्यावाध, बाधा रहित अपुणरावित्ति
- पुनरागमन से रहित .. सिद्धिगइ
सिद्धि गति नामधेयं - नामक .
.. ... ठाणं..
- स्थान को . .. संपत्तारणं
- जिन्होंने प्राप्त कर लिया है . .. . नमो . . . : ..
नमस्कार हो जियभयारणं ... . भय को जीतने वाले जिगारणं
जिन भगवान को . ठाणं संपाविउ कामाणं - स्थान को प्राप्त करने वाले
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(दूसरे नमोत्थुरणं में) ... 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग' । मोक्ष मार्ग के तीन अंग हैं__ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक् चारित्र । वैदिक ग्रन्थों में इन्हें भक्ति
योग, ज्ञानयोग व कर्मयोग से पुकारा गया है। सम्यगज्ञान व सम्यक्चारित्र की प्राप्ति के लिये साधक के हृदय में सम्यग्दर्शन याने श्रंद्धा · का अंकुरित होना आवश्यक है । श्रद्धाशून्य हृदय में ज्ञान व चारित्र के .. ... कल्पवृक्ष पल्लवित नहीं हो सकते। इसलिये श्रद्धा पर शास्त्रों में अत्यधिक
बल दिया गया है। भगवान के प्रति श्रद्धा जागत होती है उनकी भक्ति से। सच्चा भक्त साधक ही प्रभु के चरणों में अपने आपको समर्पित कर आगे की साधना कर सकता है। भक्ति का महत्त्व सामायिक के पाठों के क्रम से
भी स्पष्ट है। सर्वप्रथम नमस्कार मंत्र, सम्यक्त्व-सूत्र व गुरु वंदन-सूत्र ये .... तीनों सूत्र भक्तियोग के परिचायक हैं। फिर पालोचना व कायोत्सर्ग के
पश्चात् लोगस्स पुनः भक्ति सूत्र है। इस प्रकार भक्त भगवान के चरणों में
नतमस्तक हो, अपनी इच्छा भगवान के चरणों में अपित कर व्रत ग्रहण .: करता है। पूर्ण संयम का महान् कल्पवृक्ष सामायिक के बीज में ही छिपा
है। यदि यह बीज सुरक्षित रह कर अंकुरित, पल्लवित व पुष्फित होता रहे. तो एक दिन अवश्य ही मुक्ति का अमर फल प्रदान कर सकेगा। इसी भक्ति भावना व सामायिक के अमृत बीज का सिंचन करने के लिये अन्त में पुनः भक्तियोग का अवलम्बन लिया जाता है । यह कार्य शक्रस्तव द्वारा सम्पन्न किया गया है। - नमोत्थुरणं में मुख्य रूप से तीर्थंकर भगवान की स्तुति की गयी है। इस सूत्र में तीर्थंकर भगवान के विश्वहितकर निर्मल आदर्श गुणों का अत्यन्त सुन्दर ढंग से परिचय दिया गया है। तिथंकर भगवान की स्तुति के साथ ही साथ उनके महान विशिष्ट सद्गुणों का वर्णन नमोत्थुणं की एक ऐसी निजी
सामायिक-सूत्र | ५१