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• खासिएणं .......
- खासा:
खांसी आने से............ छीएणं.... . .. छींक आने से :: . जंभाइएणं
जम्हाई आने से .... उडडएणं.
- डकार आने से ........ वायनिसग्गेणं. ....... - अधोवायु निकलने से .. भमलीए ..... चक्कर आने से . पित्त-मुच्छाए .... . - पित्त के कारण मूर्छा से .. सुहमेहि अंग संचालेहि .. - सूक्ष्म रूप से अंग के संचालन से सुहुमेहि खेल संचालेहि - सूक्ष्म रूप में कफ के संचार से.. सहुमेहि दिदिठ संचालहिं - सूक्ष्म रूप से नेत्र फड़कने से या दृष्टि
... का संचार होने से ... . . एकमाइएहि आगारेहि - इस प्रकार के प्रागारों से अभागो
अखण्ड अविराहिओ
अविराधित हुज्ज मे काउस्गो ' . - मेरा कायोत्सर्ग हो
- जब तक अरिहंताणं भगवंताणं - अरिहंत भगवान को नमुक्कारेणं
नमस्कार करके न पारेमि
(कायोत्सर्ग को) न पारूं ... ताव
तब तक " कायं.
- शरीर को ठाणेणं.....
स्थिर रख कर
मौन रख कर झारणेरणं
ध्यान धर कर अप्पारणं ..... -: आत्मा को : बोसिरामि... - (पाप से) अलग करता हूँ, छोड़ता हूँ
। । ।
मोरगणं
पाप-निवृत्ति और प्रायश्चित पद्धति को प्रचार-पीठिका मिली है कायोत्सर्ग के रूप में । तस्स उत्तरी-सूत्र इसी कायोत्सर्ग की दार्शनिक पृष्ठ भूमि है इसमें साधक पाप क्रिया से आत्मा को पृथक करने और इसे पवित्र बनाने के लिए समस्त पाप कर्मों को नष्ट करने के लिये कायोत्सर्ग करता है । प्रस्तुत सूत्र के द्वारा यात्मा ऐपिथिक प्रतिक्रमण करने के बावजूद भी शेष आत्मिक मलिनता एवं विषमत्ता को दूर करने के लिये विशिष्ट परिष्कार के लिये कायोत्सर्ग की साधना करती है। . . . . .
समायिक - सूत्र /३१