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• गुरु वन्दन-सूत्र
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कल्लाणं
तिवखुत्तो पायाहिरणं, पयाहिरणं, करेमि, बंदामि नमसामि, सक्कारेमि; सम्माणेमि, ... कल्लारणं मंगल देवयं चेइयं ... .
पज्जुवासामि, मत्थएण वदामि ॥-- तिक्खुत्तो -- तीन वार
आयाहिरणं पयाहिणं प्रदक्षिणा करेमि
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. करता हूँ . वंदामि
वन्दन करता हूँ नमंसामि
नमस्कार करता हूँ सक्कारेमि
सत्कार करता हूँ सम्मामि सम्मान देता हूँ
कल्याण रूप
मंगल रूप देवयं - धर्म देव चेयं
ज्ञानवंत या चित्त को प्रसन्न करने वाले
(ऐसे आपकी) पज्जुवासामि - उपासना करता हूँ मत्यएण - मस्तक झुका कर वंदामि - नमस्कार करता हूँ प्रस्तुत सूत्र गुरु वन्दन सूत्र है। इसके अन्तर्गत गुरुदेव को वंदना की गयी है । गुरु शब्द में दो अक्षर हैं 'तु' और 'रु' । 'गु' अक्षर अन्धकार का वाचक है तथा 'रु' नाश का। अतः गुरु शब्द का पूरा शाब्दिक अर्थ हैं अन्धकार का नाश करने वाला। यह अन्धकार कोई द्रव्य अन्धकार नहीं वरन अज्ञान तथा मोह का भाव अन्धकार है। द्रव्य अन्धकार तो दीपक भी मिटा सकता है पर इस भावान्धकार को मिटाने में गुरुदेव की यात्मीय शक्ति ही समर्थ है।
मंगलं
सामायिक - सूत्र ) १६