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________________ उत्तर यह सत्य है कि अरिहंत और सिद्ध दोनों ही देव हैं तथा कर्म शत्रुत्रों पर पूर्ण विजय प्राप्त कर चुके हैं, फिर भी इनमें अन्तर है। (i) अरिहंत और सिद्ध में प्रथम अन्तर तो यह है कि सिद्ध भगवान ने अपने आठों ही कर्मों का नाश कर लिया है जब कि अरिहंत भगवान ने अभी केवल चार घनघाती कर्मों का ही क्षय किया है, उनके आयुप्य, नाम, गोत्र तथा वेदनीय ये चार कर्म अभी बाकी हैं। (ii) दूसरे चूकि सिद्ध भगवान के कोई कर्म शेष नहीं है, अतः उनके रंग, रूप और शरीर का अभाव होने से वे जन्म-मरण. रहित हैं। वे न तो किसी जाति या गोत्र से संबद्ध हैं और न ही सुख-दुःख की अनुभूति से युक्त । सिद्ध भगवान निरंजन निराकार हैं। जिस प्रकार ज्योति में ज्योति का समावेश हो जाता है, वैसे ही जिस स्थान पर एक सिद्ध आत्मा के प्रदेश होते हैं उसी स्थान पर अनन्त सिद्ध यात्मात्रों के प्रदेश भी रहे हुए हैं। इसके विपरीत अरिहंत भगवान के अभी आयु प्रादि चार कर्म वाकी हैं अतः ये अभी सशरीरी मनुष्य भव में विद्यमान हैं। चूकि उनके नाम कर्म शेष हैं अतः उनके शरीर, रंग, रूप, आकार आदि हैं। चूंकि उनके गोत्र कर्म शेष हैं, अतः वे उच्च गोत्र का अनुभव करते हैं। वेदनीय कर्म शेष होने से वे अभी साता या असाता का भोग भी करते हैं। (iii) अरिहंत भगवान अभी सशरीरी हैं तथा धर्म संघ के नेता हैं, .. अतः वे उपदेश देते हैं। सिद्ध भगवान अशरीरी होने से उनके प्रवचन का सवाल ही नहीं उठता। नोट-ध्यान रहे कि अरिहंत भगवान ही काल कर सिद्ध पद की प्राप्ति करते हैं। प्रश्न-३ अरिहंत भगवान को सिद्ध भगवान को अपेक्षा प्रथम स्थान क्यों ? उत्तर- अरिहंत और सिद्ध दोनों में से बड़ा कौन और छोटा कौन, प्रथम कौन और द्वितीय कौन, इसका कोई निरपेक्ष समुत्तर देना असंभव है । अरिहंत भगवान चूंकि सशरीरी हैं, अतः वे लोक में विचरण सामायिक - सूत्र / १४
SR No.010683
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendra Bafna
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1974
Total Pages81
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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