________________
'स्वादीरेरिणो' यह वार्तिक भी वाचनिक ही है । न्यासकार ने इस वार्तिक का तथा इस प्रकरण में आए अन्य वार्तिकों को व्याख्या द्वारा अन्यथा प्तिद्वत्व दिखलाया है। उनके मतानुसार उत्तर सूत्र 'आटश्च' में च शब्द पढ़ा गया है। वह च शब्द अप्राप्ति स्थन में भी वृद्धि के विधान के लिए है जैसे - अहिणी, स्वैरिणी इत्यादि लक्ष्यों में वृद्धि सिद्ध हो जाती है । इस प्रकार उनके मतानुसार ये दोनों वार्तिक च शब्द से लभ्य अर्ध के अनुवादक मात्र हैं ।
1. अॅटाध्यायी, 7/1/90.