________________
नहीं माना है फिर भी 'कार' और 'लृकार' के 'इत्संज्ञा' प्रयुक्त कार्यों में
परस्पर साइक रोकने के लिए पृथक अनुबन्धकरण को ज्ञापक मानना आवश्यक है । इतने से ही सभी स्थलों में दोष का निवारण हो जाता है । इसीलिए नागेशभ आदि आचार्यों ने लाघव होने से इसी मार्ग का अनुसरण किया है ।