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____ 2. इन्दमित्र - इन्दुमित्र नाम के वैयाकरण ने का शिका की एक 'अनुन्याप्त' नाम की
व्याख्या लिखी थी।
___ 3. विद्यासागर मनि - विद्यासागर मुनि ने का शिका की प्रक्रियाम जरी' नाम की
टीका लिखी।
4. हरदत्त मिश्र - हरदत्त मिश्र ने का शिका की 'पदम जरी' नाम की व्याख्या
लिखी है।
____5. रामदेव मिश्र - ने काशिका की 'वृत्तिप्रदीप' नाम की व्याख्या लिखी ।
पाणिनीय व्याकरण के प्रक्रिया ग्रन्थकार
.पाणिनीय व्याकरण के पश्चात् कातन्त्र आदि अनेक लघु व्याकरण प्रक्रिया क्रमानुसार लिखे गए हैं। इन व्याकरणों की प्रक्रियानुसार रचना होने से इनमें यह विशेषता है कि छात्र इन ग्रन्थों का जितना मार्ग अध्ययन करके छोड़ देता है, उसे उतने विष्य का ज्ञान हो जाता है । पाणिनीय अSC Tध्यायी आदि व्याकरणों के सम्पूर्ण अग्रन्थ का जब तक अध्ययन न हो, तब तक किसी एक विषय का भी ज्ञान नहीं होता, क्योंकि इसमें प्रक्रियाक्रमानुसार प्रकरण रचना नहीं है । अल्पमेन और लाम प्रिय व्यक्ति पाणिनीय व्याकरण को छोड़कर का तन्त्र आदि प्रक्रियानुसारी व्याकरणों का अध्ययन करने लगे, तब पाणिनीय वैयाकरणों ने भी उसकी रक्षा के लिए अCTध्यायी की प्रक्रियाक्रम से पठन-पाठन की नई प्रणाली का आविष्कार किया। विक्रम की 16वीं शताब्दी के पश्चात् पाणिनीय व्याकरण का समस्त पठन-पाठन प्रक्रिया