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में अनुवृत्ति निर्देश पद का व्याख्यान करते हुए कैयट ने कहा है "वृत्ति शास्त्रस्य • लक्ष्ये प्रवृत्तिर क्तनुगतो निर्देशो नुवृत्ति निर्देश : " इसी प्रकार से शास्त्रप्रवृत्ति में जोड़ा जाता है वह सब वार्तिक है । ऐसा वार्तिक शब्द की व्युत्पत्ति से वार्तिक पद का अर्थ सिद्ध होता है । शास्त्र प्रवृत्ति केवल सूत्र से जानी जाती है । ऐसा नहीं है । अपितु व्याख्यात्मक सूत्रों की वार्त्तिकें भी व्याख्यात्मक होती है । वृत्ति के व्याख्यान 'वार्त्तिक' शब्द को दूसरी व्युत्पत्ति की गई है । व्याख्यान पद की व्याख्या करते हुए भाष्यकार ने कहा है कि "न केवल चर्चा पदानि व्याख्यानं वृद्धि:, आत्, एच इति । किं तर्हि १ उदाहरणं प्रत्युउदाहरणं वाक्याध्याहार इत्येतद् समुदितं व्याख्यानं भवति ।। यहाँ पर वाक्याध्याहार पद से सूत्रों में अपेक्षित पदों का दूसरे सूत्रों से समायोजन ही वार्तिक का सूत्रार्थं की व्यवस्था करना अर्थ निकलता है ।
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भाष्यकार आख्यान शब्द अनेक विधि को बताता है । यथा व्याख्यानमन्वाख्यानं प्रत्याख्यान चेति । वहाँ पर अपेक्षित देशादिपूर्ति सूत्रार्थ की व्यवस्था ही न केवल व्याख्यान पद के चर्चित विषय है । अपितु व्याख्यान इत्यादि के द्वारा "वृद्धिरादैच" सूत्र के भाष्य प्रमाण से सक्षेप किया है । अन्वाख्यान शब्द की भाष्यकार ने अनेकों स्थलों पर प्रयोग किया है । यथा " किं पुनरिदं विवृतस्योपदिश्यमानस्य प्रयोजनमन्वाख्यायते । आहो स्विय् विवृतोपदेशश्चोद्यते ।" "नेतदन्वाख्येयमधिकारा अनुवर्त्तन्ते इति ।" सूत्रानुरूप लक्ष्य सिद्धि के अनुसार आख्यान ही अन्वाख्या
1. भाष्य की०सं० भा० 1, पृष्ठ 11.