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वैयाकरणों में किंवदन्ती है कि पाणिनि की मृत्यु त्रयोदशी को हुई थी तथा अनुजे पिडगल की मृत्यु मगर के निगलने से हुई थी।
पाणिनीय व्याकरण का सम्बन्ध शैव महेश्वर सम्प्रदाय के साथ है। यह बात प्रत्याहार सूत्रों को माहेश्वर सूत्र कहने से ही स्पष्ट है । पाणिनि व्याकरण तंत्र का आरम्भ 'वृद्धिरादैच' सूत्र से होता है। पाणिनि व्याकरण का मूल ग्रन्थ HSC Tध्यायी है । आचार्य पाणिनि अScाध्यायी का तीन प्रकार से पाठ का । प्रवचन किया - धातुपाठ, गणपाठ तथा उणा दिपाठ । इन विविध पाठों का सूक्ष्म अन्वेषण करके हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि आचार्य पाणिनि के प चाइंग व्याकरण का ही त्रिविध पाठ है । वह पाठ सम्म्रति प्राच्य, उदीच्य और दक्षिणा त्य से त्रिधा विभक्त है । पाणिनीय शास्त्र के चार नाम उपलब्ध होते हैं, अSc क, ASCTLयायी, शब्दानुशासन और वृत्तिसूत्र पाणिनीय ग्रन्थ आठ अध्यायों में विभक्त है अत: उनके ये नाम प्रसिद्ध हुए हैं। इसमें अSCTध्यायी नाम सर्वलोक विश्नुत हैं । 'शब्दानुशासन' यह नाम महाभाष्य के आरम्भ में मिलता है । पाणिनीय सूत्र के लिए 'वृत्तिसूत्र' पद का प्रयोग महाभाष्य में दो स्थलों पर उपलब्ध होता है । अECTध्यायी का प्रथम सन्धि प्रकरण, द्वितीय में सुबन्त प्रकरण, तृतीय में तिइन्त प्रकरण, चतुर्थ में कृदन्त प्रकरण ५ चम में विभत्यार्थ प्रकरण काठ में समास प्रकरण, सप्तम में तद्धित तथा अष्टम में स्त्री प्रत्यय प्रकरण है । अटाध्यायी के सूत्रों पर ही महर्षि कात्यायन ने वार्तिक लिखे और उन्हीं वार्तिकों पर भाष्यकार पत जलि में भाष्य लिखे। 3965 सूत्र पाणिनि के ही हैं। अटाध्यायी के उपजीव्य ग्रन्थों में अपिगलतं प्रमुख है जिसका समर्थन पदम परीकार ने भी किया है ।