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________________ 208 उस के सन्नियोग से 'यवन' शब्द को 'जानुक्' का 'आगम' भी होता है । 'यवनाना' लिपिर्यवनानी अर्थात् यवनों की लिपि यवनानी कहलाती है । यवन शब्द से लिपि अर्थ में 'तस्येदम्' से प्राप्त 'अणु' डीव' प्रत्यय के द्वारा वाधित होता है.। अतएव 'यवनाना' यवनों का! इस अर्थ में 'इदन्त्वेन लिपि' की विवक्षा करने पर यावनी यह प्रयोग असाधु ही है । हिम, अरण्य, यव शब्दों से यद्यपि प्रयेाग-लहाण डोष असम्भव है तथा पि यवन् शब्द से पुंयोगलक्षण 'डी' सम्भव है लेकिन यहाँ मात्र डीई' मात्र होकर यवनी ही बनेगा 'अलु विषय' के परिगण होने से यहाँ लिपि अर्थ में ही 'भानुक' होगा । मा तुलोपाध्यायोरानुग्वा' • 'इन्द्रवरुणभववि स्द्रमृडहिमारण्ययवयवनमा तुलाचायणिामानुकू"2 सूत्र के भाष्य में ही 'उपाध्याय मातुलाभ्यां वा' यह वार्तिक पढ़ा गया है। मातुल शब्द से इन्द्रवरुण इस सूत्र के द्वारा नित्य आनुक प्राप्त होने पर उपाध्याय शब्द से प्राप्त न होने के कारण दोनों स्थनों में इस वार्तिक से 'जानुक्' का विकल्प से विधान किया जाता है । डीप' तो 'पुयोगादाख्यायाम' से नित्य ही होगा। इस प्रकार यह वार्तिक 'अनुक्' का ही विकल्प विधान करता है । 'डी' का विकल्प नहीं। इसी लिए भाष्यकार ने उपाध्यायी, उपाध्यानी, 1. लघु सिद्धान्त कौमुदी, स्त्री प्रत्यय, प्रकरणम्, पृष्ठ 1038. 2. अटाध्यायी, 4/1/49.
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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