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से '' प्रत्यय शेष पूर्ववत् । परिगणन कर देने के कारण यहाँ यलोप नहीं होतासूर्यस्यायं सौर्यः, अगस्तस्यायं अगस्त्यः । परिगणनाभाव में '' की तरह 'अणा दि' में भी 'यलोप' हो जाता क्योंकि 'तद्वित' की अनुवृत्ति आने से तद्वित मात्र में .यलोप प्राप्ति होती ।
हिमा रण्ययो महत्त्वे
'इन्द्रव स्णभवशास्द्रमृडहिमारण्ययवयवनमातुलावाणिामानुक्2 इस सूत्र के भाष्य में यह वार्तिक पढ़ा गया है। यह वार्तिक 'इन्द्रव सण' इत्यादि सूत्र से विहित 'डी' और 'आनु' की विषय व्यवस्था के लिए है। इसी प्रकार इसके बाद के भी वार्तिक पूर्वोक्त विषय व्यवस्था हैं। महत्त्व से युक्त 'हिमादि' स्त्रीलिङ्ग से अभिसम्बद्ध होते हैं जब जब स्त्रीत्व की विवक्षा में 'डी एवं 'आनुक्' होते हैं, यह वार्तिक का अर्थ है । यह न्यास में स्पष्ट है । महत्त्वयोगे में ही 'हिम एवं अरण्य का स्त्रीत्व से अभिसम्बन्ध होता है । महत्त्व की ॐ विवक्षा में इन दोनों में 'नपुंसकलिङ्ग' ही होता है अत: महत्त्व के योगाभाव में स्त्रीत्व विवक्षा में हिम एवं अरण्य शब्द से 'cाप्' हो जाये ऐसी
आशंका नहीं करनी चाहिए । महत्त्वविवक्षा में स्त्रीत्व नियत होने के कारण 'डी' एवं 'ॐानुक्' नियतरूप से होते हैं । महदस्त्रिम्' इस अर्थ में "हिमानी'
I. लघु सिद्धान्त कौमुदी, स्त्री प्रत्यय प्रकरणम्, पृष्ठ 1037. 2. अष्टाध्यायी 4/1/49.