________________
134
कि 'युद' विधान 'यण' रोकने में समर्थ नहीं है तो नहीं, कह सकते, 'व्य जन' से परे अनेक प्रकार श्रवण विशेषाभाव ही पन होगा ।
किडतिरमागमं वाधित्वा सम्प्रसारणं विप्रतिभेने
%3
OT
'भस्जोरोपध्योरमन्यतरस्याम2 इस सूत्र के भाष्य में 'भस्वोदशात्त प्रसारण विप्रतिषेधेन ' यह वार्तिक पढ़ा गया है। इसलिए 'भृज्यात Fट: ' आदियों में 'रमागम' को बाधकर पूर्व प्रतिषेधेन 'ग्रहिज्या इस सूत्र से 'सम्प्रसारण' होता है । इससे 'विप्रतिषेध' वार्तिक के अभाव में 'परत्वात् रमागम' होता है । नित्य होने के कारण ही सम्प्रसारण से 'रमागम' की बाधता को आश्रय करके पूर्व 'विप्रतिषेधेन ' इस वार्तिक भाष्यकार ने प्रत्याख्यान किया है क्योंकि सम्प्रसारण नित्य है 'रमागम' करने पर भी प्राप्त होता है । न करने पर भी 'रमागम' 'अनित्य' है । 'सम्प्रतारण' करने पर नहीं प्राप्त होता । उस समय 'रेफाभाव' होने के कारण यद्यपि 'सम्प्रसारण' होने पर 'रमागम' दूसरे को होता है न होने पर दूसरे को होता है । अतः शब्दान्तर प्राप्ति है तथापि कहीं-कहीं 'कृत
I. लघु सिद्धान्त को मुदी, तुदादि प्रकरणम्, पृष्ठ 612. 2. अष्टाध्यायी 6/4/47. 3. वही, 6/1/16. 4. इद मिह सम्प्रधार्यम् - भस्जादेशः क्रियताम सम्प्रसारणमिति, किमत्र कर्तव्यम् १ परत्वात अस्लादेश: नित्यत्वात् सम्प्रसारणमित्यादि ।
... - तत्त्वबोध सिद्धान्त कौमुदी ।