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विभाषा: ' इस सूत्र के अविष्य में भी 'वाम् नौ' इत्यादि आदेश 'अनन्वादेश' में विकल्प से होते हैं । व्याख्यान वाक्य मे 'सर्वे एव' इसका अर्थ उक्त सूत्र के विष्यभूत तथा अविष्यभूत सभी 'वान्नौ' इत्यादि आदेश लिए जाते हैं। इस प्रकार यह वार्तिक 'सपूर्वा प्रथमाया: ' इस सूत्र का शेष नहीं है । न तो इस सूत्र से विहित 'विभाषा' के विषय निर्धारण के लिए ही है । अपितु स्वतंत्र रूप से 'अनन्वादेश' में विकल्प से विधायक है । अतः 'सपूर्वाया: प्रथमाया: ' इसके अभाव में भी 'अनन्वादेश' में 'युष्मदस्मद' आदेश विकल्प से होते हैं। जैसे - कम्बलस्ते स्वम् , कम्बनस्तौ स्वम् इत्यादि । इस पक्ष में 'सपूर्वाया: ' यह सूत्र 'अन्वादेश' में भी विकल्प विधान के लिए है जैसे - 'अथो ग्रामे कम्बलस्ते स्वम् प्रथमाया: अनन्वादेश' और 'अन्वादेश' दोनों स्थनों पर विकल्प से प्रवृत्त होता है। अन्यत्र 'अनन्वादेश' में ही विकल्प से होता है तथा 'अन्वादेश' में नित्य ही आदेश होते हैं । यही सूत्र और वार्तिक का निष्कर्ष है ।
. शंका होती है कि अधि व्याख्या के अनुसार सर्पूवा प्रथमा के विषय में भी अन्वादेश में नित्य ही आदेश प्राप्त होते हैं। जैसे – 'अधो ग्रामे कम्बलस्ते स्वम्' । द्वितीय व्याख्या के अनुसार 'सपूर्वाया: ' इस सूत्र से विकल्प से आदेश प्राप्त होते हैं । ऐसी स्थिति में इन प्रयोगों का साधुत्त्व कैसे होगा। एक ही प्रयोग में व्याख्यान भेद से साधुत्व एवं असाधुत्व अन्याय है। इस शांका के समाधान में यह कहा जा सकता है कि उत्तर व्याख्यान के द्वारा पूर्व व्याख्यान का बाध हो जाता है । अतः अबाधित उत्तर व्याख्यान के अनुसार साधुत्व की