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चपला।
___ थानेश्वरमें चपलाके लिए शोक करनेवाला कोई न था, उसके माता पिता बचपनमें ही मर गये थे । एक बहुत दूरका सम्बन्धी था, उसने उसे दया करके अपने घरमें लाकर पाल लिया था । चपलाके प्रतिपालककी विमला नामकी एक कन्या थी। विधाताने उसे रूप न दिया था, परन्तु चपला सुन्दरी थी, इस अपराधसे विमलाकी माता चपलाको देख नहीं सकती थी। इस कारण आज चपलाके लिए किसीकी भूख और नींदमें कोई बाधा न पड़ी।
२ आश्रिता। डोंगी कोई एक कोस तक बराबर बहती चली गई। इसके बाद वह एक ऐसी जगहमें जहाँ कि नदी कुछ मुड़कर बही थी किनारेके बिलकुल पास जा पहुँची । तैरनेवाला पीछे पीछे आ रहा था, उसने इसी स्थानपर डोंगीको पकड़ पाया । चपला अब भी स्थिरतासे डोंगीको पकड़े थी, उसने इस बीचमें किसी ओरको दृकूपात भी न किया था। __ बलिष्ठ तैराकने जिस समय डोंगीको किनारेकी ओर ले जाकर चपलासे उतरनेके लिए कहा, उससमय उसके हाथ काँपने लगे-उससे उतरा नहीं गया । यह देखकर युवकने एक हाथसे तो डोंगीकी टूटी हुई रस्सी थाम ली और दूसरे हाथसे बालिकाको उठाकर किनारेपर उतार दिया। उस समय दोनोंके कपड़े भीगे हुए थे। चपला चल नहीं सकती, यह देखकर युवक उसे पीठ पर बढ़ाकर समीपके एक गाँवमें ले गया। __ गाँवके लोगोंने दोनोंको कपड़े दिये, आहार दिया और स्थान दिया । सन्ध्या होनेके पहले वे दोनों सुस्थ हो गये-विश्राम मिलनेसे उनकी थकावट जाती रही। युवकने कहा; "चलो मैं तुम्हें तुम्हारे गाँव में पहुँचा आऊँ ।” चपला रोने लगी और बोली-“मैं अनाथा हूँ, मेरा कोई नहीं है, यदि मुझे वहाँ ले जाओगे तो जिनके घर में रहती हूँ, वे मुझे मारेंगे और मेरा तिरस्कार करेंगे। यह सुनकर युवक कुछ समयके लिए चिन्तामें पड़ गया। आखिर वह बालिकाको लेकर चल पड़ा और एक मैदान पार करके रातको अपनी छावनीमें जा पहुँचा।
युवकको देखते ही वहाँ बैठे हुए सब लोग उठकर खड़े हो गये और अभिवादन करके कहने लगे कि आपको ढूँढ़नेके लिए थानेश्वरको जो लोग मेजे गये