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विचित्र स्वयंवर।
___ मन्द्रा-तू मिक्षुको ललचाकर भ्रष्ट करना चाहता है और इसके लिए अतिशय निन्द्य काम कर रहा है । फल इसका यह हुआ है कि देश में बौद्ध धर्मका प्रचार बढ़ता जाता है।
किशन०—मेरे ललचानेका इसके सिवा और कोई उद्देश्य नहीं कि भिक्षुका मन सत्यवतीसे हटकर किसी दूसरी ओर लग जावे । और आप जो बौद्धधर्मके प्रचारकी बात कहती हैं, सो भिक्षुको यहांसे निकाल देनेसे ही सारा बखेड़ा मिट जायगा। उसके जाते ही बौद्धधर्मकी जड़ उखड़ जायगी । राजकुमारी, अब भी समय है-कुछ उपाय कर दीजिए, नहीं तो भिक्षु सत्यवतीको लेकर भाग जायगा।
मन्द्रा-तू झूठ बकता है। किशन०-नहीं, मैं बिलकुल सच कहता हूं।
मन्द्राकी अवाज लड़खड़ा गई । इसके पहले अङ्गराज्यकी राजकुमारीकी कठोर आवाज किसीने भी लड़खड़ाती हुई न सुनी थी।
मन्द्रा-किशनप्रसाद, क्या यह बात सच है ? किशन-बिलकुल सच है। सत्यवती भिक्षुको अपना हृदय सोंप रही है। मन्द्रा-और भिक्षु ? किशन०-वह तो कभीका सोंप चुका है। जिस तरह हवाके तेज झोकेसे वृक्षमेंसे सनसन करती हुई आवाज निकलने लगती है, उसी तरहकी दुःखभरी आवाजसे मन्द्राने कहा-“क्या सोंप
चुका है ?"
किशन-हृदय । मन्द्रा-पापी क्या तू जानता है कि हृदय किस तरह सोंपा जाता है ?
किशनप्रसादने मन-ही-मन कहा—हां, खूब जानता हूं। अब केवल उपाय 'निकलनेकी देरी है कि फिर तो काम सिद्ध ही समझिए । इसके बाद उसने प्रकाश्यरूपसे कहा, "राजकुमारी, आप मेरी बातपर तब विश्वास करेंगी, जब आज या कल आप सुनेंगी कि भिक्षु भाग गया। अब इस सेवकके लिए क्या आज्ञा होती है ?"
मन्द्रा—तुम उसे रोकना और दोनोंको बाँध करके ले आना। जरूरत हो, तो सेनापतिकी भी सहायता लेनेसे न चूकना,अंगराज्यसे एक कुमारीको लेकरकिशन-भागना