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विचित्र स्वयंवर।
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केवल इतना ही नहीं कि वह किसीको पसन्द न करती थी-साथ ही वह समझती कि सब ही लोग भयानक चोर लंपट और डाकू हैं । इस बातकी मनाई न थी कि कोई उसके राज्यमें आवे जावे ही नहीं। नहीं, जिसको आना जाना हो खुशीसे आवे जावे और वहां रहे; परन्तु कोई विवाहकी चर्चा न करे । बस, अङ्गराज्यमें सबसे अधिक भयंकर बात यही थी।
राजा सत्यसेन भी मन्द्रासे डरता था। देशके दूसरे राजा और सारी प्रजा भी उससे भयभीत रहती थी । तब उसके विवाहकी चर्चा कौन उठावे ? मन्द्रा कुमारी रह गई—उसका विवाह न हुआ। .
मन्द्राकी माता न थी। माताकी मृत्युके बाद पिताका सारा भार उसने उठा लिया था। इस तरह वह अपूर्व लड़की उस समय राजकार्यका भार, यौवनका भार, सुखदुःखकी स्मृतिका भार, ज्ञानका भार और धर्मका भार लेकर अपने जीवनके पथमें अकेली खड़ी थी। __ राजसभाके विशाल भवनमें आज बहुतसे मन्त्री, बड़े बड़े राजकर्मचारी
और मित्रराज्योंके कई राजकुमार उपस्थित हैं। मन्द्रा महाराजके सिंहासनके पीछे बैठी हुई है । एक ओर कर्ण सुवर्णके राजपुत्र कुमार नायकसिंह ऊंची गर्दन किये हुए उस अद्भुत और अपूर्व बालिकाके रूपको देख रहे हैं। नायकसिंह सुन्दर सुसज्जित और सुवीर हैं । वे मन्द्राके पाणिग्रहणकी ही इच्छासे चम्पानगरीमें आये हैं।
एक सप्ताहके बाद अमावास्या है। इसलिए कालीपूजाके और निमंत्रण आदिके विषयमें विचार हो रहा है। सबहीकी यह राय हुई कि पूर्वपद्धतिके अनुसार अङ्गदेशमें कालीपूजा अवश्य होनी चाहिये।
राजा सत्यसेन बोले, “कुमारी मन्द्रासे भी तो पूछ लेना चाहिये।"
मन्द्रा निष्कंप और स्थिर दृष्टिसे धरतीकी ओर देख रही थी और किसी गहरी चिन्तामें डूब रही थी। धीरे धीरे सबकी आँखें झपने लगीं। राजाको, मन्त्रियोंको और प्रजाके लोगोंको-सबको तन्द्रा आने लगी।
मन्द्राके निद्रारहित नेत्रोंको भी तन्द्राने घेर लिया। बहुत प्रयत्न करने पर भी उसकी आँखें झपने लगीं। __ इसी समय उस विशाल सभाभवनके द्वारपर एक मिक्षुक आकर खड़ा हो गया ।