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जयमाला।
देशके समस्त चित्रकार राजसभामें उपस्थित हैं । छविनाथको इसकी खबर पहले ही मिल चुकी थी । परंतु वह जानकर भी आज इस सभामें नहीं आया।
चित्र परीक्षा प्रारंभ होने में अब अधिक विलम्ब नहीं हैः। ऐसे समयमें एक आदमी हांपते हांपते राजसभामें उपस्थित हुआ । उसके हाथमें छविनाथका अंकित किया हुआ मनोहरका चित्र है। सब लोग इस आगन्तुक पुरुषकी ओर देखने लगे । राजाके इशारेसे पहरेवालोंने रास्ता छोड़ दिया । उसने आकर चित्र रखकर प्रार्थना की कि “महाराज ! मैं भी विचारप्रार्थी हूं, यह चित्र परीक्षाके लिए लाया हूं।"
चित्रपरीक्षा प्रारंभ हो गई । राजाने एक एक करके सब चित्रोंकी परीक्षा की और अन्तमें मनोहरके चित्रको दाहिने हाथसे उठाया । उन्होंने बहुत समय तक उसका निरीक्षण करक उच्चस्वरसे कहा कि “ यह चित्र जिसका खींचा है, वही तुम सब चित्रकारोंमें श्रेष्ठ चित्रकार है।" ___ सब लोग उस चित्रकी ओर देखने लगे । एक ही साथ सभामें उपस्थित समस्त लोगोंकी दृष्टि उस चित्र पर जा पड़ी। सब ही आश्चर्यसे देखने लगे किनदीके तीरपर एक पत्थरपर बैठी हुई सुन्दर सुकुमार बालककी अपूर्व मूर्ति है। उसमें कृत्रिमताका लेश भी नहीं है । उस मूर्तिको देखकर चित्रसे बालकको गोदमें लेनेक लिए दर्शकोंके दोनों हाथ स्वतः ही आगेको बढ़ते हैं। ___ राजा-( मनोहरके पितासे ) इस चित्रके बनानेवालेका क्या नाम है और वह कहां है ? ____ “राजन्, इसके बनानेवालेका नाम मैं नहीं जानता और यह भी नहीं जानता 'कि वह कहां रहता है। परन्तु यह चित्र मेरे बालककी जीवंत प्रतिमूर्ति है। ऐसा मनोहर चित्र मैंने आजतक नहीं देखा, इसी लिए महाराजकी सेवामें इसे विचारके लिए उपस्थित किया है।" ___ अनेक अनुसन्धान होनेपर भी चित्रकारका पता नहीं लगा। राजाने मनोहरके पिताको प्रचुर पुरस्कार देकर उस चित्रको अपने पास रख लिया। उस दिन कुछ भी विचार स्थिर नहीं हो सका।
राजाने विचारप्रार्थी चित्रकारोंको बुलाकर कहा-"तुम लोगोंमें कौन श्रेष्ठ चित्रकार है, इसका निर्णय कुछ भी नहीं हो सका । इस लिए तुम लोग फिरसे चित्र तैयार करके लाओ, मैं तुम्हारा विचार करूँगा।”