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________________ राजतिलक था कि नवेन्दुबाबू जैसे गण्य मान्य व्यक्तिकी प्राप्तिसे कांग्रेसकी कितनी बल वृद्धि हुई है, इसका अन्दाज नहीं किया जा सकता। ___ कांग्रेसकी बलवृद्धि ? हाय स्वर्गीय तात पूर्णेन्दुशेखर ! क्या तुमने इस हतभागेको कांग्रेसकी बल-वृद्धि करनेके लिए ही भारत-भूमिमें जन्म दिया था? किन्तु दुःखके साथ सुख भी है। नवेन्दु जैसे आदमी साधारण श्रादमी नहीं समझे जा सकते। यह बात छिपाई नहीं जा सकी कि उन्हें अपनी अपनी ओर खींच लानेके लिए, एक अोर भारतवर्षीय अँगरेज लोग और दूसरी ओर कांग्रेसके भक्तजन, बड़ी उत्सुकताके साथ अपनी अपनी बंसी डाले हुए एकटक देख रहे हैं । अतएव नवेन्दुने हँसते हँसते वह अखबार लावण्यको दिखलाया । जैसे वह कुछ जानती ही न हो, इस तरह आश्चर्ययुक्त होकर बोली-अरे बापरे ! इस भले श्रादमीने तो बिलकुल भंडा-फोड़ कर दिया। हाय हाय ! तुमने इसका क्या बिगाड़ा था ! इसकी कलमको घुन लग जाय, इसकी स्याहीमें धूल पड़ जाय, इसके कागजों में दीमक लग जाय नवेन्दुने हँसकर कहा-अब आप मेरे शत्रुपर अधिक शापोंकी वर्षा मत कीजिए। मैं अपने शत्रुको क्षमा करके आशीर्वाद देता हूँ कि उसकी कलम-दावात सोनेको हो जाय । दो दिनके बाद नवेन्दुबाबूके हाथमें अँगरेज़-सम्पादित एक अँगरेज़ी अखबार आ पड़ा जिसमें एक जानकार की सहीसे पूर्वोक्त संवादका प्रतिवाद प्रकाशित हुअा था । लेखकने लिखा था-जो लोग नवेन्दुवाबूको जानते हैं वे इस बातपर कभी विश्वास नहीं करेंगे कि वे इस प्रकारकी बदनामीका काम कर सकते हैं। चीतेके लिए जिस तरह अपने चमड़ेपरकी काली धारियोंका परिवर्तन करना संभव है, उसी प्रकार नवेन्दुके लिए भी कांग्रेसमें शामिल होना संभव है।
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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