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जय और पराजय
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आज अन्तिम दिन है। आज जय-पराजयका निर्णय होगा । राजाने अपने कविकी ओर देखा। उसका अर्थ था कि आज निरुत्तर रहनेसे काम न चलेगा, तुम्हें अपनी शक्ति-भर प्रयत्न करना चाहिए।
शेखर एक अोर खड़े हो गये और उन्होंने ये थोड़ेसे वाक्य कहेहे वीणापाणि श्वेतभुजा, यदि तुम अपने कमल-वनको सूना छोड़कर मल्लभूमिमें आ खड़ी होोगी, तो तुम्हारे चरणों में आसक्ति रखनेवाले अमृत-पिपासी भक्तजनोंकी क्या दशा होगी? इन वाक्योंको उन्होंने अपने मुँहको कुछ ऊँचा उठाकर बहुत ही करुण स्वरमें कहा। मानो श्वेतभुजा वीणा-पाणि नीचे नेत्र किये हुए राजान्तःपुरके झरोखेके सामने ही खड़ी हो। ___ तब पुण्डरीकने उठकर बड़े जोरसे हँस दिया और 'शेखर' शब्दके अन्तिम दो अक्षर ग्रहण करके अनर्गल श्लोक-रचना कर डाली। कहा कि पद्मवनके साथ खरका क्या सम्पर्क ? और संगीतकी चाहे जितनी चर्चा हो, फिर भी उक्त प्राणी क्या लाभ उठा सकता है ? सरस्वतीका अधिष्ठान तो पुण्डरीक ही है ; महाराजके राज्यमें उसने ऐसा क्या अपराध किया है जो इस देशमें वह खर-वाहन बनाकर अपमानित की जा
यह प्रत्युत्तर सुनकर पण्डितगण बड़े जोरोंसे हँस पड़े। सभासदोंने भी उसमें योग दिया और उनकी देखादेखी सभी लोग जिन्होंने समझा या न समझा, हँसने लगे।
इसका ठीक उत्तर देनेकी अाशासे राजा अपने कवि-सखाको बार वार अंकुशके समान तीक्ष्ण दृष्टिसे विद्ध करने लगे। परन्तु शेखरने उसकी ओर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया, वे अटल भावसे बैठे रहे । ___ तब राजा मन ही मन शेखरसे अत्यन्त रुष्ट होकर सिंहासनसे उतर पड़े और अपने गलेसे मोतियोंकी माला उतारकर उन्होंने पुण्डरीकके