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रवीन्द्र-कथाकुञ्ज
जाना ; परन्तु इस समय इस गरीब को छुट्टी दे दो, जिससे यह अपनी कन्याका अन्तिम संस्कार कर सके !"
दारोगा साहबका जो प्रेम-मैत्री-विटप अनेक दुखियोंके आँसुओंके सेचनसे लहलहा रहा था, वह इस अाकस्मिक आँधीसे गिरकर जमीनमें मिल गया! ___ इसके थोड़े ही दिन बाद मैंने दारोगा साहबसे क्षमा-प्रार्थना की, उनकी महदाशयताकी स्तुति की और अपनी मूर्खताको बारबार धिक्कारा ; परन्तु आखिर मुझे अपना घर छोड़ना ही पड़ा।