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________________ प्रस्तावना ६९ १-इस ग्रन्थमें मंगलश्लोक नहीं है जब कि प्रभाचन्द्र अपने प्रत्येक ग्रन्थमें मंगलाचरण नियमित रूपसे करते हैं। २-सन्धियोंके अन्तमें तथा ग्रन्थमें कहीं भी प्रभाचन्द्रका नामोल्लेख नहीं है जब कि प्रभाचन्द्र अपने प्रत्येक ग्रन्थमें 'इति प्रभाचन्द्रविरचिते' आदि पुष्पिकालेख या 'प्रमेन्दुर्जिनः' आदि रूप से अपना नामोल्लेख करनेमें नहीं चूकते। ३-प्रभाचन्द्र अपनी टीकाओंके प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र, शब्दाम्भोजभास्कर आदि नाम रखते हैं जब कि इस ग्रन्थके इन श्लोकोंमें इसका कोई खास नाम सूचित नहीं होता "शब्दानां शासनाख्यस्य शास्त्रस्यान्वर्थनामतः। प्रसिद्धस्य महामोघवृत्तेरपि विशेषतः ॥ सूत्राणां च विवृतिर्लिख्यते च यथामति । प्रन्थस्यास्य च न्यासेति (?) क्रियते नामनामतः ॥" ४-शाकटायन यापनीयसंघके आचार्य थे और प्रभाचन्द्र थे कट्टर दिगम्बर । इन्होंने शाकटायनके स्त्रीमुक्ति और केवलिभुक्तिप्रकरणोंका खंडन भी किया है । अतः शाकटायनके व्याकरणपर प्रभाचन्द्रके द्वारा न्यास लिखा जाना कुछ समझमें नहीं आता। ५-इस न्यासमें शाकटायनके लिए प्रयुक्त 'संघाधिपति, महाश्रमणसंघप' आदि विशेषणों का समर्थन है। यापनीय आचार्यके इन विशेषणोंके समर्थनकी आशा प्रभाचन्द्र द्वारा नहीं की जा सकती । यथा"एवंभूतमिदं शास्त्रं चतुरध्यायरूपतः, संघाधिपतिः श्रीमानाचार्यः शाकटायनः । महतारभते तत्र महाश्रमणसंघपः, श्रमेण शब्दतत्त्वं च विशदं च विशेषतः ॥ . महाश्रमणसंघाधिपतिरित्यनेन मनःसमाधानमाख्यायते । विषयेषु विक्षिप्तचेतसो न मनःसमाधि.."असमाहितचेतसश्च किं नाम शास्त्रकरणम् , आचार्य इति तु शब्दविद्याया गुरुत्वं शाकटायन इति अन्वयबुद्धिप्रकर्षः, विशुद्धान्वयो हि शिष्टरुपलीयते । महाश्रमणसंघाधिपतेः सन्मार्गानुशासनं युक्तमेव..." ६-प्रभाचन्द्रने अपने प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्रमें जैनेन्द्रव्याकरणसे ही सूत्रोंके उद्धरण दिए हैं जिसपर उनका शब्दाम्भोजभास्कर न्यास है। __* मैसूर यूनि० में न्यासग्रन्थकी दूसरे अध्यायके चौथे पादके १२४.सूत्र तक की कापी है (नं. A. 605)। उसमें निम्नलिखित मंगलश्लोक हैं "प्रणम्य जयिनः प्राप्त विश्वव्याकरणश्रियः । शब्दानुशासनस्येयं वृत्तेर्विवरणोधमः ॥ अस्मिन् भाष्याणि भाष्यन्ते वृत्तयो वृत्तिमाश्रिताः। न्यासा न्यस्ताः कृताः टीकाः पारं पारायणान्ययुः॥ तत्र वृत्ता (त्या) दावयं मंगलश्लोकः श्रीवीरममृतमित्यादि।" परन्तु इन श्लोकोंकी रचनाशैली प्रभाचन्द्रकृत न्यायकुमुदचन्द्र आदि के मंगलश्लोकोंसे अत्यन्त विलक्षण है।
SR No.010677
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages921
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size81 MB
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