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________________ सम्पादकीय जब न्यायकुमुदचन्द्रका सम्पादन चल रहा था तब श्रीयुत कुन्दनलालजी जैन तथा पं० सुखलालजी के आग्रह से मुझे प्रमेयकमलमार्तण्ड के. पुनःसम्पादन का भी भार लेना पड़ा। __ इसके प्रथमसंस्करण के संपादक पं० बंशीधरजी शास्त्री सोलापुर थे । मैंने उन्हींके द्वारा सम्पादित प्रति के आधार से ही इस संस्करण का सम्पादन किया है । मैंने मूलपाठ का शोधन, विषयवर्गीकरण, अवतरणनिर्देश तथा विरामचिह्न आदि का उपयोग कर इसे कुछ सुन्दर बनाने का प्रयत्न किया है। प्रथम तो यही विचार था कि न्यायकुमुदचन्द्र की ही तरह इसे तुलनात्मक तथा अर्थबोधक टिप्पणों से पूर्ण समृद्ध बनाया जाय, और इसी संकल्प के अनुसार प्रथम अध्याय में कुछ टिप्पण भी दिए हैं । ये टिप्पण अंग्रेजी अंको के साथ चालू टिप्पण के नीचे पृथक् मुद्रित कराए हैं। परन्तु प्रकाशक की मर्यादा, प्रेस की दूरी आदि कारणों से उस संकल्प का दूसरा परिच्छेद प्रारम्भ नहीं हो सका और वह प्रथम परिच्छेद के साथ ही समाप्त हो गया। आगे तो यथासंभव पाठशुद्धि करके ही इसका संपादन किया है। श्री पं० बंशीधरजीसा० ने, जब वे काशी आए थे, कहा था कि-"प्रमेयकमलमार्तण्ड में मुद्रित टिप्पण एक प्रति से ही लिया गया है" और यही बात उन्होंने पं० नाथूरामजी प्रेमी से भी कही थी। इसलिए मुद्रित टिप्पण जो कहीं कहीं अस्तव्यस्त या अशुद्ध था, जैसा का तैसा रहने दिया है। प्राचीन टिप्पण की मौलिकता के संरक्षण के ध्येयने ही उसे जैसे के तैसे रूप में छपाने को प्रेरित किया है । इस संस्करण के टाइप, साइज, कागज आदि की पसन्दगी प्रकाशकजीने अपनी सुविधाके ही अनुसार की है। यदि मेरी पसन्द के अनुसार इसकी प्रकाशनव्यवस्था हुई होती तो अवश्य ही यह अपने सहोदर न्यायकुमुदचन्द्र की ही तरह प्रकाशित होता। संस्करणपरिचयइस संस्करण में प्रथमसंस्करण की अपेक्षा निम्नलिखित सुधार किए हैं १ सूत्रयोजना-प्रमेयकमलमार्तण्ड परीक्षामुखसूत्र की विस्तृत व्याख्या है और इसका परीक्षामुखालङ्कार नाम भी है। अत: इसमें सूत्रों का यथास्थान विनिवेश किया है जिससे प्रत्येक सूत्रकी व्याख्या का पृथक्करण होजाय । इसलिए सूत्राङ्क भी पेजके ऊपरी कौने में दे दिए हैं। २ पाठशुद्धि-प्रकरण तथा अर्थ की दृष्टि से जो अशुद्धियाँ प्रथम १ देखो रत्नकरण्डश्रावकाचार की प्रस्तावना पृ० ६० की टिप्पणी ।
SR No.010677
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages921
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size81 MB
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