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________________ प्रस्तावना ५९ समय ई० ९५० से १०२० तक निर्धारित किया है । इस निर्धारित समयकी शताब्दियाँ तो ठीक हैं पर दशकों में अन्तर है । तथा जिन आधारोंसे यह समय निश्चित किया गया है वे भी अभ्रान्त नहीं हैं । पं० जीने प्रभाचन्द्रके ग्रन्थोंमें व्योमशिवाचार्यकी व्योमवती टीकाका प्रभाव देखकर प्रभाचन्द्रकी पूर्वावधि ९५० ई० और पुष्पदन्तकृत महापुराणके प्रभाचन्द्रकृत टिप्पणको वि० सं० १०८० ( ई० १०२३ ) में समाप्त मानकर उत्तरावधि १०२० ई० निश्चित की है । मैं ' व्योमशिव और प्रभाचन्द्र' की तुलना करते समय ( पृ० ८ ) व्योमशिवका समय ईसाकी सातवीं शताब्दीका उत्तरार्ध निर्धारित कर आया हूं । इसलिए मात्र व्योमशिव के प्रभावके कारण ही प्रभाचन्द्रका समय ई० ९५० के बाद नहीं जा सकता । महापुराणके टिप्पणकी वस्तुस्थिति तो यह है कि - पुष्पदन्तके महापुराण पर श्रीचन्द्र आचार्यका भी टिप्पण है और प्रभाचन्द्र आचार्यका भी । बलात्कारगणके श्रीचन्द्रका टिप्पण भोजदेव के राज्यमें बनाया गया है । इसकी प्रशस्ति निम्न लिखित है 1 इस अन्तिमश्लोक ध्वनित होता है की यह ग्रन्थ जिनसेन स्वामीकी मृत्युके बाद बनाया गया है; क्योंकी वही समय जिनसेनके पादोंकें स्मरणके लिए ठीक जँचता है । अतः आत्मानुशासनका रचनाकाल सन् ८५० के करीब मालूम होता है । आत्मानुशासन पर प्रभाचन्द्रकी एक टीका उपलब्ध है । उसमें प्रथम लोकका उत्थान वाक्य इस प्रकार है"बृहद्धर्मातुलोकसेनस्य विषयव्या मुग्धबुद्धेः सम्बोधनव्याजेन सर्वसत्वोपकारकं सन्मार्गमुपदर्शयितुकामो गुणभद्रदेवः " अर्थात् गुणभद्र स्वामीने विषयों की ओर चंचल चित्तवृत्तिवाले बड़े धर्मभाई (?) लोकसेनको समझाने के बहाने आत्मानुशासन ग्रन्थ बनाया है । ये लोकसेन गुणभद्रके प्रियशिष्य थे । उत्तरपुराणकी प्रशस्ति में इन्हीं लोकसेनको स्वयं गुणभद्रने 'विदितसकलशास्त्र, मुनीश, कवि अविकल - वृत्त' आदि विशेषण दिए हैं। इससे इतना अनुमान तो सहज ही किया जा सकता है कि आत्मानुशासन उत्तर पुराणके बाद तो नहीं बनाया गया; क्योंकि उस समय लोकसेन मुनि विषयव्यामुग्धबुद्धि न होकर विदितसकलशास्त्र एवं अविकलवृत्त हो गए थे । अतः लोकसेनकी प्रारम्भिक अवस्थामें, उत्तर पुराणकी रचनाकै पहिले ही आत्मानुशासनका रचा जाना अधिक संभव है । पं० नाथूरामजी प्रेमीने विद्वद्रलमाला ( पृ० ७५ ) में यही संभावना की है । आत्मानुशासन गुणभद्रकी प्रारम्भिक कृति ही मालूम होती है । और गुणभद्र इसे उत्तरपुराणके पहिले जिनसेन की मृत्युके बाद बनाया होगा । परन्तु आत्मानुशासनकी आन्तरिक जाँच करने से हम इस परिणाम पर पहुँचे हैं कि इसमें अन्य कवियोंके सुभाषितोंका भी यथावसर समावेश किया गया है । उदाहरणार्थआत्मानुशासनका ३२ वाँ पद्य 'नेता यस्य बृहस्पतिः ' भर्तृहरिके नीतिशतकका ८८ वां श्लोक है, आत्मानुशासनका ६७ वाँ पद्य 'यदेतत्स्वच्छन्दं' वैराग्यशतकका ५० व श्लोक है । ऐसी स्थिति में 'अन्धादयं महानन्धः ' सुभाषित पद्य भी गुणभद्रका स्वरचित ही है यह निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते । तथापि किसी अन्य प्रबल प्रमाणके अभावमें अभी इस विषय में अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता ।
SR No.010677
Book TitlePramey Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherSatya Bhamabai Pandurang
Publication Year1941
Total Pages921
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size81 MB
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