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प्रस्तावना
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यद्यपि संन्यासियोंकी शिष्य-परम्पराके लिए प्रत्येक पीढीका समय २५ वर्ष मानना आवश्यक नहीं है; क्योंकि कभी कभी २० वर्षमें ही शिष्य-प्रशिष्यों की परम्परा चल जाती है। फिर भी यदि प्रत्येक पीढीका समय २५ वर्ष ही मान लिया जाय तो पुरन्दरसे तीन पीढी के बाद हुए व्योमशिवका समय सन् ६७० के आसपास सिद्ध होता है।
दार्शनिकग्रन्थोंके आधारसे समय-व्योमशिव स्वयं ही अपनी व्योमवती टीका (पृ० ३९२) में श्रीहर्षका एक महत्त्वपूर्ण ढंगसे उल्लेख करते है। यथा-.. __“अत एव मदीयं शरीरमित्यादिप्रत्ययेष्वात्मानुरागसद्भावेऽपि आत्मनोऽवच्छेद. कलम् । हर्ष देवकुलमिति ज्ञाने श्रीहर्षस्येव उभयत्रापि बाधकसद्भावात् , यत्र ह्यनुरागसद्भावेऽपि विशेषणत्वे वाधकमस्ति तत्रावच्छेदकत्वमेव कल्प्यते इति । अस्ति च श्रीहर्षस्य विद्यमानत्वम् । आत्मनि कर्तृवकरणखयोरसम्भव इति बाधकम्.. "
यद्यपि इस सन्दर्भका पाठ कुछ छूटा हुआ मालूम होता है फिर भी 'अस्ति च श्रीहर्षस्य विद्यमानत्वंम्' यह वाक्य खास तौरसे ध्यान देने योग्य है। इससे साफ मालूम होता है कि श्रीहर्ष ( 606-647 A. D. राज्य ) व्योमशिवके समयमें विद्यमान थे । यद्यपि यहां यह कहा जा सकता है कि व्योमशिव श्रीहर्षके बहुत वाद होकर भी ऐसा उल्लेख कर सकते हैं; परन्तु जब शिलालेखसे उनका समय ई० सन् ६७० के आसपास है तथा श्रीहर्षकी विद्यमानताका वे इस तरह जोर देकर उल्लेख करते हैं तब उक्त कल्पनाको स्थान ही नहीं मिलता।
व्योमवतीका अन्तःपरीक्षण-व्योमवती (पृ. ३०६,३०७,६८० ) में धर्मकीर्तिके प्रमाणवार्तिक ( २-११,१२ तथा १-६८,७२ ) से कारिकाएँ उद्धृत की गई है। इसी तरह व्योमवती (पृ. ६१७) में धर्मकीर्त्तिके हेतुबिन्दु प्रथमपरिच्छेदके "डिण्डिकरागं परित्यज्य अक्षिणी निमील्य" इस वाक्यका प्रयोग पाया जाता है । इसके अतिरिक्त प्रमाणवार्त्तिककी और भी बहुतसी कारिकाएँ उद्धृत देखी जाती हैं। .. व्योमवती ( पृ. ५९१,५९२ ) में कुमारिलके मीमांसा-श्लोकवार्तिककी अनेक कारिकाएँ उद्धृत हैं । व्योमवती (पृ० १२९) में उद्योतकरका नाम लिया है, 'भर्तृहरिके शब्दाद्वैतदर्शनका (पृ० २० च ) खण्डन किया है और प्रभाकरके स्मृतिप्रमोषवादका भी (पृ० ५४० ) खंडन किया गया है।
इनमें भर्तृहरि, धर्मकीर्ति, कुमारिल तथा प्रभाकर ये सब प्रायः समसामयिक और ईसाकी सातवीं शताब्दीके विद्वान् हैं । उद्योतकर छठी शताब्दीके विद्वान् हैं । अतः व्योमशिवके द्वारा इन समसामयिक एवं किंचित्पूर्ववर्ती विद्वानोंका उल्लेख तथा समालोचनका होना संगत.ही है। व्योमवती (पृ०.१५) में बाणकी